Thursday 13 September 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥तुम्हारी जरुरत♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सूनी घर की चाहरदिवारी, सूना घर का आंगन!
सूख गया तुलसी का पौधा, टूट गया है दर्पण!
कमरे की सब तस्वीरें भी, चुप चुप सी रहती हैं,
रंग पड़ गए फीके उनके, सिमट गया है योवन !

मैं अपना क्या हाल बताऊ, जान जरा सी नहीं बदन में!
दिन कटता है पल पल तन्हा, रात कट रही करुण रुदन में!

खिड़की के परदे खिसका कर, हाथ को चेहरे तले लगाकर,
अपनी दोनों अंखियो से मैं, अश्कों की धारा बरसा कर!

पल-पल, लम्हा, मिनट-मिनट, तेरा  इंतजार करता हूँ!
पैमाने से नप ना पाय, तुम्हें इतना प्यार करता हूँ………

बिन तेरे ये सुबह अधूरी, तुम बिन है ये शाम अधूरी!
कौनसी ऐसी बात पे तुमने, कर डाली मीलों सी दूरी!
तुम कहती थी जीते जी मैं, साथ नहीं छोडूंगी पल को,
कौन सी ऐसी बात हुयी जो, जाना इतना बना जरुरी!

मैं अपना क्या हाल बताऊ, जान जरा सी नहीं बदन में!
गर्दन रखकर सिरहाने पे, ताकता रहता दूर गगन में!

चेहरे पर जुल्फें बिखराकर, दूर दूर तक नयन घुमाकर!
पैर में छाले पड़ जाने पर, चरण पादुका हाथ उठाकर!

पल-पल, लम्हा, मिनट-मिनट, तेरा  इंतजार करता हूँ!
पैमानों से नप ना पाय, तुम्हें इतना प्यार करता हूँ………



"इंतजार की एक सीमा होती है, जब इंतजार हद से ज्यादा बढ़ जाता है और द्वितीय पक्ष, प्रथम पक्ष की भावनाओं को नहीं समझते हुए दूर रहता है, तब निश्चित रूप से वेदना होती है!

यही वेदना उकेरने का प्रयास-----चेतन रामकिशन (देव ) "

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