Sunday 20 April 2014

♥♥खुशियों की लकीरें...♥♥

♥♥♥♥♥♥खुशियों की लकीरें...♥♥♥♥♥♥♥
क्यूँ मेरे हाथ में खुशियों की लकीरें कम हैं!
क्यूँ कड़क धूप में भी, आँख ये मेरी नम हैं!
क्या मैं इंसान नहीं, बुत या कोई पुतला हूँ,
क्यूँ मेरे खून में शामिल, ये हजारों ग़म हैं!

क्या मुझे हँसने का, खुश होने का हक़ कोई नहीं!
क्या मुझे चैन से सोने का भी, हक़ कोई नहीं!
क्यों उदासी पे मेरी लोग सवालात करें,
क्या मुझे खुलके यहाँ रोने का, हक़ कोई नहीं!

तोड़ दे कोई, क्यूँ ज़ज्बात मेरे, बेदम हैं!
क्यूँ मेरे हाथ में खुशियों की लकीरें कम हैं...

क्यों मेरी आह को सुनकर भी निकल जाते हैं!
लोग अपने भी यहाँ, देखो बदल जाते हैं!
"देव", नातों में, मोहब्बत में, हुई है ग़ुरबत,
मोम के रिश्ते हैं पल भर में पिघल जाते हैं!

भीड़ होकर भी हैं तन्हा, की अधूरे हम हैं!
क्यूँ मेरे हाथ में खुशियों की लकीरें कम हैं!"

............चेतन रामकिशन "देव".......

2 comments:

रश्मि शर्मा said...

भीड़ होकर भी हैं तन्हा, की अधूरे हम हैं!
क्यूँ मेरे हाथ में खुशियों की लकीरें कम हैं!"

वाह...बहुत खूब

मुकेश कुमार सिन्हा said...

सुंदर लकीरें ........