Friday 29 April 2011

♥♥♥ मुहब्बत का हसीन एहसास ♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ मुहब्बत का हसीन एहसास ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
" तुम्हारी आंख का आंसू, मेरे दिल से निकलता है!
  तेरी यादों में दिन निकले, तेरी यादों में ढलता है!

       बिना तेरे कोई रस्ता, कोई मंजिल नहीं मिलती!
   तेरा साया मेरे हमदम, हमेशा साथ चलता है!

तू ही धड़कन मेरे दिल की, तू ही सांसो की खुश्बू है!
मोहब्बत की दुआओं से, मेरा चेहरा निखरता है!

     तेरी चाहत ने बख्शी हैं, ज़माने में मुझे खुशियाँ,
  तेरा ही प्यार जीवन में, हंसी के रंग भरता है!

तुम्हारे प्यार की अब "देव", मुझको कद्र करनी है,
तुम्हारे प्यार में पत्थर भी, अब भगवान लगता है!

"शुद्ध और सच्चा प्रेम, व्यक्ति के  जीवन  में खुशियों प्रदान करता है! प्रेम की उर्जा मरणासन्न व्यक्ति में भी जान डाल देती है! तो आइये शुद्ध प्रेम करें!-चेतन रामकिशन (देव)"


♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ beautiful feeling of love ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
"The tears your eyes, my heart comes out!
  
 Days left in your memories, your memories are over!
             
                    Without you, no way, do not get a floor!
                 
Your shadow my dear, always travels with!

You only beat of my heart, you have the smell of the breath!
Blessings of love, my face comes in the freshness!

                 Your wish is granted the same, I joy in times,
               
Your own love life, laughter fills the colors!


Love you now "Dev", have to respect me!
Stone in love with you, now feel God!”

  "pure and true love, happiness in one's life offers! love the energy in the dying persondoes put life! so come to love the net! - Chetan ramkishan (Dev)"



Thursday 28 April 2011


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ बोलती लाश ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
" सुबह सुबह एक खबर उड़ी की, चौराहे पर लाश मिली है!
  सबसे अंत में जो दिखता है, उस खम्बे के पास मिली है!
  होठ भी उसके खुले खुले से, और आंखे भी फैली फैली,
  कपड़े भी हैं खून से भीगे, खून से गीली घास मिली है!

ये तो वो पगली लड़की है, कुछ दिन पहले शहर में आई!
इस अबला के संग में देखो, कुछ लोगों ने हवस बुझाई!

    नहीं सह सकी दुःख की पीड़ा, टूट गयी सांसो की माला!
    उन लोगो ने अपने सुख में, मानवता को मृत कर डाला!

यह ज़ख़्मी हालात देखकर, सिसक रहे अल्फाज हमारे!
इतनी मैली, इतनी गन्दी, सोच को आखिर कौन निखारे…………….

ये पगली लड़की तो देखो, सबको देख हंस पड़ती थी!
कभी भागती थी बच्चों संग, कभी बड़ों के संग चलती थी!
जब भी कोई उसका देता, रोटी सब्जी हाथ बढाकर,
उसकी इन दोनों अंखियों में, अपनेपन की लौ जलती थी!

    नहीं बह सकी नदियों जैसी, फूट गया अश्रु का प्याला!
    उन लोगो ने अपने सुख में, मानवता को मृत कर डाला!

ये खूनी आघात देखकर, तड़प रहें हैं साज हमारे!
इतनी मैली, इतनी गन्दी, सोच को आखिर कौन निखारे…………….

इस पगली लड़की की सिमटी, लाश भी मानो बोल रही है!
कितना नैतिक पतन हुआ है, इसका पर्दा खोल रही है!
"देव" ना जाने क्या होगा अब, कैसे चैन सुकून मिलेगा,
जैसे कांप रहा हो अम्बर, जैसे धरती डौल रही है!

     नहीं कह सकी जीते जी जो, मरकर वो प्रस्तुत कर डाला!
     उन लोगो ने अपने सुख में, मानवता को मृत कर डाला!
ये काली प्रभात देखकर, आए लब पर राज हमारे!
इतनी मैली, इतनी गन्दी, सोच को आखिर कौन निखारे!”

इस खूनी नैतिक पतन की पराकास्ठा की यह सिर्फ एक हकीक़त नहीं ही, बल्कि अनगिनत लाशें इस सत्यता को बयां करती हैं! ये कविता इसलिए लिखी क्यूंकि खुद मैंने ऐसे केस की कवरेज की है! तो आइये इस नैतिकता के माहौल का बदलने का प्रयास करें!-चेतन रामकिशन (देव)”