♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥बदलते कलमकार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कलमकार के शब्दों में अब, आम आदमी नहीं रहा है!
या लगता है कलमकार ने, दर्द भूख का नहीं सहा है!
इस दुनिया में देखो वो कब, दर्द किसी का लिख पाएंगे,
जिन लोगों का लाचारी में, कोई आंसू नहीं बहा है!
प्रेम की विरह घातक है पर, मुफलिस की पीड़ा से कम है!
वो क्या सच को लिख पाएगा, जिसकी हिम्मत ही बेदम है!
उनसे आखिर रणभूमि में, लड़ने की उम्मीद क्या रखें,
नाम मौत का सुन लेने से, जिस इन्सां के घर मातम है!
वो क्या जानेंगे सपनों को, जिनका सपना ढहा नहीं है!
कलमकार के शब्दों में अब, आम आदमी नहीं रहा है...
बड़ी बड़ी बातें करने से, पहले दिल को बड़ा बनाओ!
अपने दिल को मानवता के, जज्बातों का पाठ पढ़ाओ!
"देव" जहाँ में दौलत ही बस, नहीं शर्त अच्छा बनने की,
अच्छा इंसां बनना है तो, अच्छाई के दीये जलाओ!
वो क्या जाने ओस, धूप को, जो बिन छत के रहा नहीं है!
कलमकार के शब्दों में अब, आम आदमी नहीं रहा है!"
....................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-१९.०५.२०१३