Saturday 12 July 2014

♥♥वजूद...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥वजूद...♥♥♥♥♥♥♥♥
खुद को अपना वजूद दिखलाया!
दर्द से जीतना हमें आया!

पंख मेरे भले ही टूटे पर,
मैंने आकाश को न झुठलाया!

ख़्वाहिशें सब नहीं मिला करतीं,
ये सबक अपने दिल को सिखलाया!

रूह है अब भी चाँद सी सुन्दर,
ग़म ने हर रोज चाहें झुलसाया!

तेरे आने से आ गयी खुशबु,
जैसे बगिया में फूल खिल आया!

टूटे पत्तों को हाथ में लेकर,
दिल को पेड़ों का दर्द बतलाया !

"देव" चाहत में क्या कमी मेरी,
उनके हिस्से का भी ज़हर खाया! "

......चेतन रामकिशन "देव".......
दिनांक-१३.०७ २०१४