Tuesday 29 December 2015

♥♥चांदनी रात...♥♥

♥♥♥♥♥चांदनी रात...♥♥♥♥♥
चांदनी रात हो रही फिर से। 
ख़्वाब में बात हो रही फिर से। 

एक अरसे से इतना सूखा था,
आज बरसात हो रही फिर से। 

तेरी तस्वीर में भी आई दमक,
ये करामात हो रही फिर से। 

सारे आकाश में हैं, मैं और तुम,
यूँ मुलाकात हो रही फिर से। 

रेशमी डोर से बंधे हम तुम,
ऐसी सौगात हो रही फिर से। 

सज गयी तू दुल्हन की तरह से,
आज बारात हो रही फिर से। 

"देव " न ख्वाब तोड़कर जाना,
देखो प्रभात हो रही फिर से। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२९.१२.२०१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "  

Monday 28 December 2015

♥तपस्या...♥

♥♥♥♥♥तपस्या...♥♥♥♥♥♥♥
अनुभूति की हत्या कर दी। 
खंडित प्रेम तपस्या कर दी। 
जिसका पथ आसान किया था,
उसने जटिल समस्या कर दी। 

मेरे मन को भेद दिया है,
निर्ममता के प्रहारों से। 
मेरे भावों को काटा है,
विष में डूबी तलवारों से।  
मेरे नयनों को अश्रु का,
जीवन भर अभिशाप दे दिया,
मैंने दी थी कुशल कामना,
उसने मुझको श्राप दे दिया। 

जो सौगंध उम्र भर की थी,
उसने  क्षण में मिथ्या कर दी।  
जिसका पथ आसान किया था,
उसने जटिल समस्या कर दी...

सक्षम थे वो सुन सकते थे,
मुझ याचक के प्रस्तावों को। 
वो चाहते तो भर सकते थे,
छूकर के मेरे घावों को। 
पर न समझा मर्म को मेरे,
रौंद दिया है घायल मन को। 
निरपराधी होकर बोला,
दंड मेरे भावुक जीवन को। 

मेरे शत्रु के संग मिलकर,
विजय की स्वयं प्रतिज्ञा कर दी। 
जिसका पथ आसान किया था,
उसने जटिल समस्या कर दी। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२८.१२.२०१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "  

Friday 25 December 2015

♥खुद्दारी...♥

♥♥♥♥♥♥खुद्दारी...♥♥♥♥♥♥♥
अपना दिन तो बहुत कठिन था, 
अपनी रात बहुत भारी है। 
फिर भी शिकवा नहीं किसी से,
मुझमे इतनी खुद्दारी है। 
मेरे दिल के टुकड़े करके,
वो खुशियों के दीप जलायें,
नहीं पता क्यों इस दुनिया में,
मतलब की नातेदारी है। 

कड़ी धूप में जिसकी खातिर
ठंडक को मेरे साये थे। 
खुशबु से भरने को जिसके,
घर में गुलशन महकाये थे।  
जिसके पांवों में पायल के,
जोड़े बांधे बहुत प्यार से,
छुड़ा लिया वो हाथ भी उसने,
जिसमें कंगन पहनाये थे। 

बहुत कठिन है ये सब लिखना,
साँसों तक में दुश्वारी है।   
नहीं पता क्यों इस दुनिया में,
मतलब की नातेदारी है...

चलो करें वो जो उनका मन,
मिन्नत करके हार गया हूँ। 
जब पीड़ा ही किस्मत में है,
तो ये दुःख स्वीकार गया हूँ। 
"देव " हमारे दिल के भीतर,
एक लावा भर गया दर्द का,
बन बैठा हूँ मैं विस्फोटक,
मार के दिल को, पार गया हूँ। 

अपने ग़म के साथ मैं तन्हा,
चंहुओर दुनिया सारी है। 
नहीं पता क्यों इस दुनिया में,
मतलब की नातेदारी है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२५.१२.२०१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Thursday 24 December 2015

♥निर्मोही...♥♥

♥♥♥♥♥निर्मोही...♥♥♥♥♥
अश्रुपूरित नयन हो गये। 
सारे सपने दहन हो गये।  
मेरे शब्द बताकर झूठे,
सच्चे उनके कहन हो गये। 
निर्मोही होकर वो मुझसे,
तोड़ गए सम्बन्ध नेह का,
नहीं पता के उनको कैसे,
क्षण विरह के सहन हो गये। 

मैं भी रूप किसी मानव का,
पत्थर सा निष्प्राण नहीं था। 
मेरा मन भी फूल सा कोमल,
विष में डूबा वाण नहीं था। 
हो करवद्ध किया था मैंने,
उनसे अपना भाव निवेदन,
तोड़ दिया मेरे हृदय को,
जबकि मुझको त्राण नहीं था। 

घाव मिले हैं, शूल भी देखो,
कुंठा के उत्पन्न हो गये। 
नहीं पता के उनको कैसे,
क्षण विरह के सहन हो गये.... 

या तो व्याकुलता न समझें,
या संवेदनहीन हो गये। 
मैं पीड़ा में खूब कराहा,
वो सुख में आसीन हो गये। 
" देव " हमारी स्मृति में,
उनकी छवि वसी गहरे से,
और वो हमको विस्मृत करके,
किसी और में लीन हो गये। 

पीड़ा के इन प्रहारों से,
हम तो मरणासन्न हो गये। 
नहीं पता के उनको कैसे,
क्षण विरह के सहन हो गये। "


........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२४.१२.२०१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "    




Tuesday 22 December 2015

बुझा बुझा सा मन


♥♥♥♥बुझा बुझा सा मन...♥♥♥♥♥
तुम बिन रिक्त हुआ है आँगन,
तुम बिन बुझा बुझा सा है मन। 
तुम बिन क्षमता थमी कर्म की,
तुम बिन थका थका सा है तन। 

तुम बिन नदियों का तट सूना,
तुम बिन बगिया मुरझाई है। 
तुम बिन आँखों में लाली है,
नींद तनिक भी न आई है। 
तुम बिन पत्र लिखावट भूले,
शब्दों की आँखों में आंसू,
तुम बिन है गहरी मायूसी,
कंटक माला उग आई है। 

तुम बिन पौधे सूख गये हैं,
आग में झुलसा है सारा वन। 
तुम बिन क्षमता थमी कर्म की,
तुम बिन थका थका सा है तन... 

तुम बिन अन्न नहीं उगता है,
खेतों की रौनक गायब है। 
तुम बिन पंछी मौन हो गये,
अब न चिड़ियों का कलरव है। 
"देव " तुम्हारी प्रतीक्षा में,
सुबह से लेकर साँझ हो गयी,
नहीं है ध्वनि वाध यंत्र में, 
न तुम बिन कोई उत्सव है। 

तुम बिन मेरा मोल नहीं कुछ,
मिटटी सा मेरा ये कण कण। 
तुम बिन क्षमता थमी कर्म की,
तुम बिन थका थका सा है तन। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२२.१२.२०१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "  

Sunday 20 December 2015

♥कच्ची मिट्टी सा दिल...♥

♥♥♥♥♥♥♥कच्ची मिट्टी सा दिल...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
भावुकता है छिन्न भिन्न सी, घाव हुये हैं, रक्त बहा है। 
मैं ही जानूं कैसे मैंने, इतने दुःख का वार सहा है। 
मेरे मन में जिसकी छवियाँ, दीर्घकाल से स्थापित थी,
उसने मेरे सत्य प्रेम को, क्षण भर में ही झूठ कहा है। 

नहीं पता कि ऐसा करके, उनको क्या कुछ मिल पायेगा। 
या उनका चेहरा दमकेगा, या फिर आँगन खिल जायेगा। 
मेरे मन पे अंकित आखर, देख के भी अनदेखा करते,
नहीं पता था जीवन पथ पे, पीड़ा का बादल छायेगा। 

विस्मृत मेरा प्रेम किया तो, किंचित क्या फिर शेष रहा है  
भावुकता है छिन्न भिन्न सी, घाव हुये हैं, रक्त बहा है..... 

सोच रहा हूँ भावुकता को, अपनायत को बौना कर दूँ। 
प्रेम भूलकर, लूट मार कर, घर में चांदी सोना भर दूँ। 
"देव " वो सुन्दर है फूलों सा, मुझसे क्या नाता रखेगा,
तिमिर घना एकाकीपन का, मैं खुद को ही बेघर कर दूँ। 

कच्ची मिट्टी सा कोमल दिल, टुकड़े होकर शेष रहा है। 
भावुकता है छिन्न भिन्न सी, घाव हुये हैं, रक्त बहा है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२०.१२.२०१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "  

Tuesday 8 December 2015

♥♥सितारे...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥सितारे...♥♥♥♥♥♥♥
तुम तो आकाश के सितारे हो। 
मेरे महबूब कितने प्यारे हो। 

सारी दुनिया को है तेरी ख्वाहिश,
रश्क़ है हमको, तुम हमारे हो। 

बांसुरी कानों में कोई गूंजे,
नाम जब तुम मेरा पुकारे हो। 

बिन तेरे मेरा न वजूद कोई,
तुम मेरी नाव के किनारे हो। 

लड़खड़ाने का डर नहीं है मुझे,
क्यूंकि तुम जो मेरे सहारे हो। 

मेरी आँखों में नींद न तुम बिन,
रात तुम भी तो यूँ गुजारे हो। 

" देव " किरदार ये तेरा चमके,
रंग मेरा भी तुम निखारे हो। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-०८.१२.२०१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Monday 7 December 2015

♥♥♥♥फ़टी चादर..♥♥♥♥♥

दर्द दिन रात ही परोसा है। 
अब किसी पे नहीं भरोसा है। 

मैंने जिसके लिये दुआयें कीं,
देखो उसने ही मुझको कोसा है। 

आई दौलत तो मुझको भूल गया,
मैंने पाला है जिसको पोसा है। 

मुफ़लिसी मेरी और फ़टी चादर,
उसपे ठंडी हवा का बोसा है। 

"देव " आँगन तो मेरा छोड़ दिया,
पर वो उस दिन से बेघरो सा है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-०७.१२.२०१५   
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "   

Saturday 28 November 2015

♥♥देश टुकड़ों में...♥♥

♥♥♥♥♥देश टुकड़ों में...♥♥♥♥♥♥
देश टुकड़ों में बंट रहा फिर से। 
आपसी प्यार घट रहा फिर से। 

जिसकी छाँव में कोई फर्क नहीं,
पेड़ वो आज कट रहा फिर से। 

दिन दहाड़े भी अब सताये डर,
नाम इज़्ज़त का लुट रहा है फिर से। 

न बुरे वक़्त में कोई आया,
झुंड झूठों का छंट रहा फिर से। 

तोड़ना चाहें, कोई जोड़े नहीं,
हर कोई रंज रट रहा फिर से। 

लफ्ज़ जो दूरियां बढ़ाने लगें,
हर कोई उनपे डट रहा फिर से। 

"देव" इंसानियत बचेगी कहाँ,
बम ये नफरत का फट रहा फिर से। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२८.११.२०१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Friday 27 November 2015

♥♥अमानत...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥अमानत...♥♥♥♥♥♥♥
प्यार की तेरे जो अमानत है। 
मुझपे कुदरत कि ये इनायत है। 

तुमको पाकर के मिल गया है सुकूं,
न ही शिकवा है, न शिकायत है। 

तुझको छूने की भी हुयी ख्वाहिश,
चूम लूँ तुमको क्या इजाजत है। 

तेरी ज़ुल्फ़ें छुपायें चेहरे को,
कितनी मासूम ये शरारत है। 

तुम दुआओं में, हो मेरी शामिल,
तुझको चाहना मेरी इबादत है। 

"देव" आ जाओ मुझसे मिलने को,
सिर्फ तुमसे ही दिल को राहत है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२७.११.२०१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "

Thursday 26 November 2015

♥आलम...♥

♥♥♥♥♥♥आलम...♥♥♥♥♥♥♥
मुल्क का आज कैसा आलम है। 
देखो जिस ओर भी नया ग़म है। 

आदमी होके आदमी में फरक,
आज इंसानियत बड़ी कम है। 

मुफ़लिसी का मैं दर्द कैसे लिखूं,
पेट भूखा है और नही दम है। 

रात भर जागके गुजारा करूँ,
तेरे जाने से आँख ये नम है। 

मेरे अरमानों का गला घोंटा,
तू भी कातिल से अब कहाँ कम है। 

है दवा महंगी कैसे होगी शिफ़ा,
साथ बीमारियों का मौसम है। 

"देव" तकदीर है या दुश्वारी,
मुझको पानी नहीं, उन्हें रम है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२७.११.२०१५   
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "  

Friday 20 November 2015

♥लिबास...♥♥


♥♥♥♥♥♥लिबास...♥♥♥♥♥♥♥
रेशमी सा लिबास हो जाओ। 
तुम मेरे पास पास हो जाओ। 

मेरी मुस्कान तुमको मिल जाये,
जब कभी तुम उदास हो जाओ। 

है दुआ मेरी उस खुदा सा ये,
एक तुम मेरे ख़ास हो जाओ। 

जीत की खुशियां हों मुबारक पर,
हार से न हताश हो जाओ। 

इस जनम "देव " तुम हो मेरे मगर,
हर जनम तुम ही काश हो जाओ। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२०.११.२०१५   
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "

Monday 16 November 2015

♥लौ ...♥

♥♥♥♥♥♥♥लौ ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कोई लौ बनके तुम उजाला करो। 
न ही नफरत से रंग काला करो। 

सारी दुनिया को याद आओगे,
काम ऐसा जरा निराला करो। 

जी रहे जिसमें वो ही पल जीवन,
काम कल पर न कोई टाला करो। 

जिंदगी खुद की बस, नहीं होती,
फ़र्ज़ भी सबका तुम संभाला करो। 

"देव " हर धर्म से जो पावन हैं,
फूल इंसानियत के पाला करो। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-१६.११.२०१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "  

Thursday 12 November 2015

♥♥प्रेम के फूल...♥♥

♥♥♥♥♥प्रेम के फूल...♥♥♥♥♥
प्रेम के फूल खिल गये होते। 
हम जो आपस में मिल गये होते। 
आँख पढ़ लेती आँख की भाषा,
होठ बेशक ही सिल गये होते। 

तेरे आने की राह मन में है। 
तुझको पाने की चाह मन में है। 
तुम दवा प्यार की मुझे दे दो,
बिन मिले तुमसे आह मन में है। 

तुम जो मिलते तो आह भी मिटती,
गम के पर्वत भी हिल गये होते। 

प्रेम के फूल खिल गये होते। 
हम जो आपस में मिल गये होते....

मेरे ख़्वाबों की तुम पनाह करो। 
प्यार वाली जरा निगाह करो।  
साथ रहने की आरज़ू दिल में,
प्यार का प्यार से निकाह करो। 

तुम जो छू लो अगर मेरा दामन, 
मेरे सब दाग धुल गए होते। 

प्रेम के फूल खिल गये होते। 
हम जो आपस में मिल गये होते....

तुम से बस इतनी सी गुजारिश है। 
साथ दो आपका, ये ख्वाहिश है। 
"देव " तुम आओगे तो झूमे घटा,
प्यार तेरा ख़ुशी की बारिश है। 

देखकर अपना ये मिलन सब खुश,
बागवां सारे खिल गये होते। 

प्रेम के फूल खिल गये होते। 
हम जो आपस में मिल गये होते। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-१२.११.२०१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Tuesday 10 November 2015

♥झालर ...♥

♥♥♥♥♥झालर ...♥♥♥♥♥♥
हर आँगन में खुशहाली हो। 
ऐसी सबकी दीवाली हो। 
रंग बिरंगी झालर दमकें,
रात नहीं ग़म से काली हो। 

नफरत के शोले बुझ जायें,
चिंगारी तक शेष रहे न। 
मानवता से प्यार करें सब,
किंचित भी आवेश रहे न। 
दीप जलें बस अपनेपन के,
न रंजिश हो, नहीं लड़ाई,
घुल मिल जायें हम आपस में,
बैर तनिक भी, द्वेष रहे न। 

बच्चों की हों नयी शरारत,
गोद किसी की न खाली है। 

रंग बिरंगी झालर दमकें,
रात नहीं ग़म से काली हो। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-१०.११.२०१५  
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Saturday 3 October 2015

♥याद तुम्हारी...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥याद तुम्हारी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
याद तुम्हारी आयेगी तो, चाँद का मैं दीदार करूँगा।
पास रहो या दूर रहो तुम, मैं तो तुमसे प्यार करूँगा।

भाती हो तुम मेरी रूह को, सौंप दिया है तुमको तन, मन,
मुझको तुम खुशियां या गम दो, मैं हंसकर स्वीकार करूँगा।

मुझे बताना मेरा मिलना, यदि जो तुमको नहीं सुहाये,
तो मैं तेरे घर आँगन की, देहरी को न पार करूँगा।

मेरी माँ ने मुझे सिखाया, अतिथियों का स्वागत करना,
तुम भी तो दिल की मेहमां हो, मैं तेरा सत्कार करूँगा।

तुम बोलो के या न बोलो, या फिर मुझसे नज़र चुराओ,
लेकिन मैं तेरे रस्ते पे, न कोई दीवार करूँगा।

तेरे दिल की कोमल परतें, कभी न दुःख की धूप में झुलसें,
मैं अपनी चाहत की शबनम से, हर पल बौछार करूँगा।

"देव" तुम्हारी सूरत दिल की, दीवारों पर छपी हुयी है,
तुम्हे भूलकर जीवन नौका, बोलो कैसे पार करूँगा। "
........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-०३.१०.२०१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "

Wednesday 30 September 2015

♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मुझे आंसू भी दे डाले, मेरा दिल भी दुखाया है। 
किसी ने रात मेरे घर का दीपक, फिर बुझाया है। 
मेरी गलती महज इतनी, मैं सच का साथ दे बैठा,
ये दुनिया झूठ की थी पर, समझ में मुझको आया है। 

मगर मैं झूठ के लफ़्ज़ों को, कैसे मुंह बयानी दूँ। 
बहुत सोचा के झूठे पेड़ को, कैसे मैं पानी दूँ। 
बताओ "देव" कैसे बोल दूँ तेज़ाब को अमृत,
सिखाओ मैं अंधेरों को, भला क्यों जिंदगानी दूँ। 

सही है झूठ तो पुस्तक में, फिर क्यों सच पढ़ाया है।   
ये दुनिया झूठ की थी पर, समझ में मुझको आया है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-०१.१०.२०१५  
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Wednesday 23 September 2015

♥ इंतजार की आंच...♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ इंतजार की आंच...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मुझ बिन तरस रहा होगा वो, रोकर बरस रहा होगा वो।
इंतजार की आंच में देखो, कैसे झुलस रहा होगा वो।
मुझको तो एक लम्हे को भी, खाली आँगन नहीं सुहाता,
नहीं पता कि तनहा कैसे, सालों-बरस रहा होगा वो।

पेड़ से कोई पत्ता टूटे, देखके डाली भी रोती है।
यदि कोई अपना बिछड़े तो, आँख भले ये कब सोती है।
कांटो के बिस्तर सी यादें, उसको पल पल चुभती होंगी,
मिलना चाहा, नहीं मिल सके, शायद ये किस्मत होती है।

नशा न उतरा आज भी उसका, शायद चरस रहा होगा वो।
नहीं पता कि तनहा कैसे, सालों-बरस रहा होगा वो ....

होती है तकलीफ बहुत ही, जुदा यदि चाहत होती है।
नहीं चैन मिल पाता दिल को, और नहीं राहत होती है।
"देव " मुझे मालूम है लेकिन, मेरे हाथ में वक़्त नहीं है,
वक़्त यदि जो रुख बदले तो, रूह यहाँ आहत होती है।

बारिश के बिन कड़ी धूप में, व्याकुल, उमस रहा होगा वो।
नहीं पता कि तनहा कैसे, सालों-बरस रहा होगा वो। "

........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-२३.०९.१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "

Sunday 20 September 2015

♥♥कश...♥♥

♥♥♥♥♥♥कश...♥♥♥♥♥♥♥
सिगरेट के धुयें के कश में। 
नहीं जिंदगी मेरे वश में। 

थाने, जुर्म, कचहरी कम हों,
मसले जो सुलझें आपस में। 

मुश्किल हम पर भारी होंगी,
अगर कमी आयी साहस में। 

मर्यादा भी तार तार है,
नेता उतरे निरा बहस में। 

शबनम की एक बूंद मिली न,
गम की ज्वाला और उमस में। 

औरत भी इज़्ज़त के लायक,
गुंडे भूले यहाँ हवस में। 

"देव" ये लम्बी रात कटे न,
सांस घुटी हैं, यहाँ कफ़स में। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२०.०९.१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Monday 14 September 2015

♥♥ सपनों के कण... ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ सपनों के कण... ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बिखरे हैं सपनों के कण कण, जिन सपनों को रात बुना था। 
चीख हुयी ज़ोरों की दिल से, मगर किसी ने नहीं सुना था। 
देह तड़पती रही सड़क पर, अरमानों का कत्ल हो गया,
मगर किसी ने दुखियारे का, एक चिथड़ा भी नहीं चुना था। 

ये पत्थर का जहाँ है शायद, पत्थर की दुनिया दारी है। 
कोई तड़पकर मर जाये पर, सबको अपनी जां प्यारी है। 
बेरहमी से लोग किसी के, जज़्बातों की हत्या करते,
निर्दोषों के पांव में बेड़ी, कातिल की खातिरदारी है। 

अनदेखा करते हैं उनको, दर्द वो जिनका कई गुना था। 
मगर किसी ने दुखियारे का, एक चिथड़ा भी नहीं चुना था …

वादा करके तोड़ दिये हैं और ऊपर से भ्रम करते हैं। 
लोग यहाँ सदमा देने का, बड़ा ही लम्बा क्रम करते हैं। 
"देव" यहाँ घड़ियाली आंसू, मगर रिक्त दिल अपनेपन से,
नहीं मिले २ वक़्त की रोटी, निर्धन कितना श्रम करते हैं। 

सींचा जिसको, छाया न दी, बीज वो शायद जला भुना था। 
मगर किसी ने दुखियारे का, एक चिथड़ा भी नहीं चुना था। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-१५.०९.१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Friday 11 September 2015

♥शब्दों का श्रृंगार...♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥शब्दों का श्रृंगार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
शब्दों का श्रृंगार बनो तुम, मैं कविता रचना चाहता हूँ। 
बिना तुम्हारे न जाने क्यों, लिखने से बचना चाहता हूँ। 
मेरे शब्दों को अपना लो, बस मेरी इतनी सी ख्वाहिश,
न पुस्तक की मुझे तमन्ना, और नहीं छपना चाहता हूँ ,

तुम इतनी पावन प्यारी हो, शब्द समर्पित तुमको कर दूँ। 
मन करता तेरे आँचल में, भावों का जल अर्पित कर दूँ। 

तुम्हें मानकर प्रेम की देवी, नाम तेरा जपना चाहता हूँ। 
शब्दों का श्रृंगार बनो तुम, मैं कविता रचना चाहता हूँ। 

शब्द कोष के हर पन्ने में, तुम मुझको प्रेरित करती हो। 
तुम हो मेरी अनुभूति में, हर क्षण मेरा हित करती हो। 
 "देव" तुम्हारा प्रेम परिचय, कविता का आधार बन गया,
तुम शब्दों का अलंकार बन, मेरा मन मोहित करती हो। 

शायद प्रेम इसी को कहते, सब कुछ पूर्ण निहित होता है। 
जब देनी हो प्रेम परीक्षा, तब विष भी अमृत होता है। 

हम तुम दोनों साथ रहें बस, मैं ऐसा सपना चाहता हूँ। 
शब्दों का श्रृंगार बनो तुम, मैं कविता रचना चाहता हूँ। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-१२.०९.१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Sunday 6 September 2015

♥♥विवशता...♥♥

♥♥♥♥♥विवशता...♥♥♥♥♥
दो पल सुकूं नहीं जीने को।
नहीं प्यास में जल पीने को।
नहीं दवाई बीमारी में,
न कपड़ा लत्ता सीने को।

बुझती आँखों पे न चश्मा,
न सोने को दरी, खाट है।
तरस तरस के मिलती रोटी,
न जीवन में ठाठ बाट है।
झूठी जनसेवा के नाटक,
करने से न थमे गरीबी,
धनिक कुचलते बेरहमी से,
निर्धन के संग मार काट है।

लोग मजाकों में लेते हैं,
पीड़ा का जीवन जीने को।
नहीं दवाई बीमारी में,
न कपड़ा लत्ता सीने को...

बेटी बिन ब्याही घर में है,
देने को कुछ माल नहीं है।
फसलों को कुदरत ने रौंदा,
हंसी ख़ुशी का हाल नहीं है।
"देव " नहीं पैरों में चप्पल,
और पांवों में फटी बिबाई,
नहीं भुजाओं में दम बाकी,
और क़दमों में चाल नहीं है।

काश हो निर्धन की सुनवाई,
विवश न हो अश्रु पीने को।
नहीं दवाई बीमारी में,
न कपड़ा लत्ता सीने को। "

........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-०७.०९.१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "

Saturday 15 August 2015

♥♥वर्षा का जल...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥वर्षा का जल...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सावन तुम बिन शुष्क शुष्क है, तुम वर्षा का जल बन जाओ। 
बिना तुम्हारे पथ दुर्गम है, साथ चलो तुम बल बन जाओ। 
सखी ये मेरी प्रेम तपस्या, उसी दिवस तो सफल बनेगी,
आज, अभी के साथ साथ तुम, अगर हमारा कल बन जाओ। 

दीर्घकाल तक, जनम जनम तक, साथ तेरा पाना चाहता हूँ। 
इस सृष्टि के हर युग में मैं, साथ तेरे आना चाहता हूँ। 
तुम शब्दों की संवाहक बन, कविता की रचना कर देना,
और मैं बनकर कंठ सुरीला, भाव तेरे गाना चाहता हूँ। 

दिवस, रात तुम साँझ, सवेरे, तुम्ही पहर, तुम पल बन जाओ। 
सावन तुम बिन शुष्क शुष्क है, तुम वर्षा का जल बन जाओ ... 

निशा में तुम हो धवल चन्द्रमा, और दिवस में तुम दिनकर हो। 
तुम धरती की हरियाली में, इन्द्रधनुष का तुम अम्बर हो। 
"देव" तुम्हारे कदम पड़े तो, आँगन में खुशियां आयीं हैं,
तुम फूलों की खुशबु में हो, तुम मीठी हो, तुम मधुकर हो। 

जिसकी छाँव में सपने देखूं, तुम ऐसा आँचल बन जाओ। 
सावन तुम बिन शुष्क शुष्क है, तुम वर्षा का जल बन जाओ। "

........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-१५.०८.२०१५ 
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♥कैसी आज़ादी...♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥कैसी आज़ादी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बेटी जब महफूज नहीं तो आखिर कैसी आज़ादी है। 
नाम पे मजहब के दंगे हैं, जगह जगह पे बर्बादी है। 
चंद अरबपतियों का होना, नहीं देश के सुख का सूचक,
आँख से परदे हटें तो देखो, भूखी कितनी आबादी है। 

बेटी जब अँधेरे में भी, सही सलामत घर आयेगी। 
उस दिन ही सच्चे अर्थों में, ये आजादी मिल पायेगी। 

सज़ा मिले क्यों बेगुनाह को, दूर पकड़ से उन्मादी है। 
आँख से परदे हटें तो देखो, भूखी कितनी आबादी है....

आज़ादी का मतलब देखो एक सूत्र में बंध जाना है।  
आज़ादी का मतलब घर घर दीपक जल जाना है। 
"देव" वतन में सबको रोटी, कपड़ा, घर भी है आज़ादी,
आज़ादी का मतलब देखो, भ्रष्ट तंत्र का मिट जाना है। 

रोजगार के बिन युवकों की, जीवन धारा अवसादी है। 
बेटी जब महफूज नहीं तो आखिर कैसी आज़ादी है। "

........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-१५.०८.२०१५ 
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Tuesday 11 August 2015

♥♥प्रश्न...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रश्न...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नहीं आग्रह, नहीं निवेदन, न प्रस्ताव, नहीं वाचन है।
प्रेम पथिक हूँ, भाव मार्ग पर, सदा तुम्हारा अभिवादन है।
स्मृति और छवि तुम्हारी, रहे मेरे व्याकुल नयनों में,
तुम बिन जीवन सूखा पौधा, और तुम बिन एकाकीपन है।
हाँ अयोग्य-सापेक्ष तुम्हारे, पर तुम जैसे बन नहीं सकता ।
मैं काजल सा, श्वेत वर्ण बन, अम्बर से भी छन नही सकता।
किन्तु फिर भी प्रीत का अंकुर उदय हुआ मेरे मन में।
जरा बताओ प्रश्न हमारा, प्रेम है क्या वर्जित जीवन में....
तुमने मेरा पक्ष सुना न, मनोदशा को जान सके न। 
मैं भी तुम जैसा मानव हूँ, बात कभी तुम मान सके न। 
मेरे पांवों में भी कांटे, चुभकर देखो रक्त निकलता,
एकपक्षीय ऐनक से तुम, मेरा दुख पहचान सके न।
द्वार पे तुमने ताले जड़कर, प्रतिबन्ध किये दर्शन में। 
जरा बताओ प्रश्न हमारा, प्रेम है क्या वर्जित जीवन में...
ज्यादा कुछ भी नहीं कहूँगा, केवल मैं इतना कहता हूँ। 
जरा सोचना उस बिंदु को, जिस स्थल पे मैं रहता हूँ। 
"देव" यदि तुम मेरी विरह के, भावों को अनुभूत करोगे,
तो तुम भी आश्चर्य करोगे, कैसे मैं जीवित रहता हूँ।
तुम बिन जग ऐसा लगता है, जैसे मैं हूँ निर्जन वन में। 
जरा बताओ प्रश्न हमारा, प्रेम है क्या वर्जित जीवन में। "
..................चेतन रामकिशन "देव"…….................
दिनांक-११.०८.२०१५ 
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Monday 10 August 2015

♥♥बदनसीब...♥♥

♥♥♥♥♥बदनसीब...♥♥♥♥♥♥
कोई जब बदनसीब होता है। 
दर्द कितना करीब होता है। 

बस्तियां ढहतीं वो इशारों में,
जिनमें घर घर गरीब होता है। 

एक अरबों में, एक पाई में,
क्या सभी कुछ नसीब होता है। 

बेटा हो कोख में, तो खुशियां मनें,
बेटी पे दिल अजीब होता है। 

"देव" ये दर्द, कई गुना बढ़ता,
वक़्त जब भी रक़ीब होता है। "


.....चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-१०.०८.२०१५   
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Saturday 8 August 2015

♥♥वजह ...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥वजह ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मुझसे मिलने की क्या वजह होगी। 
उसके दिल में क्या कुछ जगह होगी। 

क्या मिलेंगे मुझे मिलन के पल,
या बताओ के फिर विरह होगी। 

दर्द की रात कितनी लम्बी है,
क्या कभी इसकी भी सुबह होगी। 

रंजिशें रखता है जो मुझसे बहुत,
कैसे उस शख्स से सुलह होगी। 

वो न समझेंगे तो दुखेगा दिल,
उनसे तक़रार बेवजह होगी। 

कितना उड़ जाये पर नही वो गिरे,
सच की क़दमों में गर सतह होगी। 

"देव" जो होगा, देखा जायेगा,
या मिलन होगा के, कलह होगी। "

........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-०८.०८.२०१५ 
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♥♥पासा...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥पासा...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
न ही मरहम है, न दिलासा है। 
ढोंग है, झूठ है, तमाशा है। 

मेरी खिदमत बताओ अब क्यों भला,
कौनसी चाल का ये पासा है। 

प्यार का मेरे क़त्ल कर डाला,
क्या गुनाह तुमको ये जरा सा है। 

भूखे माँ बाप तरसें रोटी को,
जिनके बेटों पे नोट ख़ासा है। 

जो गुनहगार थे वो बच निकले,
बेगुनाहों को तुमने फांसा है। 

आसमां झाँका, नींद आई नहीं,
दर्द आँखों में बेतहाशा है। 

"देव" है नौजवां की बदहाली,
हाथ खाली है, और हताशा है। " 

........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-०८.०८.२०१५ 
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Friday 7 August 2015

♥♥जिद...♥♥

♥♥♥♥♥♥जिद...♥♥♥♥♥♥♥♥
टूटते ख्वाब जोड़ने की जिद। 
गम की चट्टान तोड़ने की जिद। 

आ रहा है जो, दर्द का तूफां,
उसको वापस ही मोड़ने की ज़िद। 

जिसने इलज़ाम ही दिये मुझको, 
वो शहर तेरा छोड़ने का ज़िद। 

वक़्त ने मेरे पंख काटे जब,
होंसला लेके दौड़ने की जिद। 

"देव" तुम प्यार से तो ले लो जां,
आँख दुश्मन की फोड़ने की जिद। "

........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-०७.०८.२०१५  
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Tuesday 4 August 2015

♥शर शैय्या...♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥शर शैय्या...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
 भीष्म पिता के जैसे मुझको, शर शैय्या पे सुला दिया है। 
रक्त वो मेरा देख के हर्षित, मेरे दुःख को भुला दिया है। 
मैंने जिनके अभियोजन में, हर क्षण ही संवाद किया था,
आज उसी ने निर्ममता से, मुझको फांसी झुला दिया है। 

अंतहीन सी मानवता है, दया किसी में शेष नहीं है। 
पत्थर जैसे हृदय हुये हैं, भावों का अवशेष नहीं है। 
धनिकों के तो जरा घाव पर, यहाँ चिकित्सक बहुत खड़े पर,
किन्तु देखो स्वास्थ्य गृहों में, निर्धन का प्रवेश नहीं है। 

कल तक जिसमें खेला था वो, उस घर को ही जला दिया है। 
भीष्म पिता के जैसे मुझको, शर शैय्या पे सुला दिया है... 

जाने कैसा काल, समय है, जाने क्या जीवन यापन है। 
यहाँ भूख से मरता कोई, और कहीं पैसों का वन है। 
"देव " किसी की आँख में आंसू, फर्क नहीं पर पड़ता कोई,
अंदर से मन में कालापन, और बाहर से उजला तन है। 

मेरे कोमल अंतर्मन को, अम्ल धार से जला दिया है। 
भीष्म पिता के जैसे मुझको, शर शैय्या पे सुला दिया है।"

..................चेतन रामकिशन "देव"………..............
दिनांक-०४.०८.२०१५
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Saturday 11 July 2015

♥♥प्रेम घटक...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम घटक...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम्हें लगा वो मृगतृष्णा थी, मुझे लगा वो प्रेम घटक था। 
मैं अपने मन से रत्नाकर, तुम्हे लगा के मैं पावक था। 
अपने भावों का सत्यापन, निशा दिवस तुमसे करके भी,
तुमने संज्ञा दे दी मुझको, मैं पीड़ा का संवाहक था। 

अविरल जब है प्रेम की धारा, उसे लोग बाधक करते हैं। 
नहीं सुनेगे भाव किसी के, केवल अपनी हठ करते हैं। 

श्राप दिया उसने ही मुझको, मैं तो जिसका आराधक था। 
तुम्हें लगा वो मृगतृष्णा थी, मुझे लगा वो प्रेम घटक था.... 


मैं मानव था, इच्छा भीं थी, पर वो भी जगदीश नहीं थे। 
मेरा मन-तन उन जैसा था, क्या उनके तन शीश नहीं थे। 
मैं भी जन था हाड़ मांस का, रक्त मेरे घावों में भी है,
क्यों कर उनके शब्दकोष में, मेरे हित-आशीष नहीं थे। 

क्या अपराध किया जो मैंने, उनको अपना सब कुछ माना। 
जिसके अश्रु पान किये थे, उसने मेरा दुःख न जाना। 

मुझको काटा निर्ममता से, वृक्ष में जबकि फलदायक था। 
तुम्हें लगा वो मृगतृष्णा थी, मुझे लगा वो प्रेम घटक था.... 

रिक्त हो गया कोष शब्द का, न कुछ भी कहने का मन है। 
अब तो इतना मान लिया के, दंड भोगना ही जीवन है। 
"देव" प्रेम के पूर्ण भाव से, सींचके पौधे भी क्या पाया,
मेरे पांवों में कांटे और, मेरे हिस्से सूखा वन है। 

सीख लिया है अनुभूति की, गंगा नहीं बहाई जाये। 
जो नहीं सुनता भाव वंदना, उसको नहीं सुनाई जाये। 

वो सक्षम थे, सुन सकते थे, मैं उनके सम्मुख याचक था। 
तुम्हें लगा वो मृगतृष्णा थी, मुझे लगा वो प्रेम घटक था। "

.........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-१२.०७.२०१५ 
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Friday 10 July 2015

♥♥सूखी हथेली...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥सूखी हथेली...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रही हथेली सूखी सूखी, बारिश में फैलाई भी थी। 
न बख्शा ज़ख्मों को मरहम, चोट उन्हें दिखलाई भी थी। 
आज वो लेकर हुनर प्यार का, मुझसे दूर गया तो क्या है,
एक दिन मुझको रीत प्यार की, उसने ही सिखलाई भी थी। 

लेकिन जब जाना होता है, तो आना ये क्यों होता है। 
कोई बिछड़ कर जाता है तो, दिल आखिर ये क्यों रोता है। 
यदि कुचलना ही होता है, यौवन धारित हरे वृक्ष हो,
तो मानव फिर बीज नेह के, किसी के मन में क्यों बोता है। 

चलो जिंदगी गयी भी तो क्या, क़र्ज़ में यूँ तो पाई भी थी। 
रही हथेली सूखी सूखी, बारिश में फैलाई भी थी.... 

चलो दशा ये अपने मन की, और पीड़ा ये अंतर्मन की। 
न ख़्वाहिश हमको मलमल की, न हसरत मुझको सावन की। 
"देव" लिखा है जो कुदरत ने, शायद ये परिदृश्य वही है.
न इच्छा है पुनर्जन्म की, न चाहत है नवजीवन की। 

भूल गया सब गति शीलता, जो अधिगम से आई भी थी। 
रही हथेली सूखी सूखी, बारिश में फैलाई भी थी। "

.........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-११.०७.२०१५ 
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♥दूर जाने की...♥

♥♥♥♥♥दूर जाने की...♥♥♥♥♥♥
दूर जाने की बात करने लगे। 
तुम उदासी की रात करने लगे। 

क्या मिले या नहीं मिले कुछ भी,
बिन लड़े अपनी मात करने लगे। 

जिससे दिल छलनी हो, बहें आंसू,
तुम भी वो वाकयात करने लगे। 

था यकीं जिनपे खुद पे ज्यादा,
वो भी गैरों सा, घात करने लगे। 

हार जाऊं, मैं तेरा मंसूबा,
पीठ पीछे बिसात करने लगे।  

प्यार में छोटा, क्या बड़ा कोई,
आज मजहब, क्यों जात करने लगे। 

"देव" हम दोस्त थे, नहीं दुश्मन,
हमसे क्यों एहतियात करने लगे। "

.........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-१०.०७.२०१५  
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Monday 6 July 2015

♥♥अंगारे...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥अंगारे...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
काटी रात जहर पीकर के, अब दिन में भी अंगारे हैं। 
झूठ की हिस्सेदारी जीती, और सच के प्रहरी हारे हैं। 
अपना मुख अमृत से भरकर, मुझको सौंपे ग़म के प्याले,
मेरे घर को दिया अँधेरा, खुद के घर में उजियारे हैं। 

नहीं पता क्यों लोग जहाँ के, इतने पत्थर हो जाते हैं। 
उनपे कुछ भी नहीं बीतती, घायल मरकर सो जाते हैं। 

बड़ी कष्ट की तिमिर की बेला, घर आँगन में अंधियारे हैं। 
काटी रात जहर पीकर के, अब दिन में भी अंगारे हैं...... 

बस उपहास किया करते हैं, वो अपने झूठे तथ्यों पर। 
तेज बोलकर दिखलाते हैं, वो अपने हितकर कथ्यों पर। 
"देव" किसी की आह सुनें न, बस स्वयंभू हो जाते हैं,
उनको मतलब नहीं किसी से, दृष्टि खुद के मंतव्यों पर। 

दंड दिया है लेकिन कहते, हम तो किस्मत के मारे हैं। 
काटी रात जहर पीकर के, अब दिन में भी अंगारे हैं। "


.........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-०७.०७.२०१५ 
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Thursday 2 July 2015

♥♥♥चाँद ...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥चाँद ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
चाँद हो तुम मेरी नज़र के लिये।
तुम ही रौनक हो मेरे घर के लिये।

तुम उजाला हो, रौशनी की किरण,
तुम ही सजदा हो, मेरे सर के लिये।

तेरे होने से, मैं रचूँ कविता,
तू जरुरी है के, बहर के लिये।

जिंदगी तेरे बिन अपाहिज सी,
तुम ही ख्वाहिश हो, रहगुजर के लिये।

चंद लम्हों का साथ कम लगता,
मेरी हो जाओ, उम्र भर के लिये।

रात के ख्वाबों का मिलन तुम हो,
तुम ही सूरज हो के, सहर के लिये।

"देव" तुम बिन है रास्ता तन्हा,
साथ हो जाओ तुम, सफ़र के लिये। "

..........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-०२.०७.२०१५
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Monday 29 June 2015

♥♥नारी(स्नेही संवाहक )...♥


♥♥♥नारी(स्नेही संवाहक )...♥♥♥
तुम उत्पत्ति हो जीवन की। 
तुम सुगंध हो चंदन वन की। 
तुम नारी की छवि को धारित,
सदा योग्य तुम अभिनन्दन की। 
चन्द्र किरण की शीतलता तुम,
तुम भानु की ऊर्जा में हो,
तुम पर्याय खिले फूलों का,
तुम ही शोभा हो उपवन की। 

सहनशीलता से पूरित हो,
मृदुभाषिता की वाहक हो। 
तुम संबंधों की गरिमा हो,
तुम स्नेही संवाहक हो। 
तुम नारी हो, दूध की गंगा,
शिशुओं को सिंचित करती हो,
तुम बिन घर में कर्म रिक्तता,
तुम कर्मठ हो, निर्वाहक हो। 

तुम्ही प्राथमिक अध्यापक हो,
तुम लोरी सबके बचपन की। 
तुम पर्याय खिले फूलों का,
तुम ही शोभा हो उपवन की। 

तुम पुत्री हो, कली की भाँती,
तुम पत्नी हो, भावनिहित हो। 
तुम माँ सबसे उच्च रूप में,
तुम ममता से पूर्ण निहित हो। 
तुम बहनों के रूप में आकर,
भाई की सहयोगी बनतीं,
हर दृष्टि में तुम मधुरम हो,
इन नयनों को सदा सुहित हो। 

तुम ही मन की प्रेम नायिका,
तुम ही वर्षा हो सावन की। 
तुम पर्याय खिले फूलों का,
तुम ही शोभा हो उपवन की। 


तुम अनुक्रम हो, परिवार का,
तुम वाहक हो संस्कार का। 
तुम स्पर्श सुखद मलमल का,
तुम प्रेरक हो सदाचार का। 
"देव" जगत में बिन नारी के,
पुरुषों का अस्तित्व न होता, 
तुम वर्णित हो कविताओं में,
तुम सूचक हो अलंकार का। 

तुम कोमल भावों की वाणी,
तुम क्षमता हो, सम्मोहन की। 
तुम पर्याय खिले फूलों का,
तुम ही शोभा हो उपवन की। "


"
नारी-त्याग, समर्पण और विश्वास, प्रेम, सदाचार और सहयोग जैसे शब्दों का, यदि कोई पर्याय है तो वह नारी ही है, नारी है तो जीवन का अनुक्रम है, नारी है तो वसुंधरा की गोद भरी है। "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-३०.०६.२०१५ 
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 "

Saturday 27 June 2015

♥♥स्वर्ग...♥♥

♥♥♥♥♥♥स्वर्ग...♥♥♥♥♥♥♥♥
स्वर्ग सा सुन्दर जीवन तुमसे। 
हर्षित भावों का मन तुमसे। 
तुम लेखन के प्राण तत्व में,
और शब्दों का यौवन तुमसे। 
तुम आशाओं के दीपक की,
ज्योति हो, प्रकाशमयी हो,
तुमसे मुख मंडल पे आभा,
फूल सा सुन्दर ये तन तुमसे। 

तुम्ही नायिका अनुभूति की,
काव्यकला के कौशल में हो। 
तुम्हें देखकर बूंदें बरसें,
अमृत जैसे तुम जल में हो। 

वाणी भी है मिश्री जैसी,
चित्त हुआ है पावन तुमसे। 
तुमसे मुख मंडल पे आभा,
फूल सा सुन्दर ये तन तुमसे... 

तुम करुणा के सागर में हो,
बनके देवी इस घर में हो। 
तुमसे ऊर्जा मिलती मन को,
तुम ही उड़ने के पर में हो। 
"देव" तुम्हारी मधुर छटा को,
देख के सावन स्वागत करता,
निहित तुम्ही हो संघर्षों में,
तुम ही मेहनत के कर में हो। 

तुम ही वीणा में झंकृत हो,
और पायल की छन छन तुमसे। 
तुमसे मुख मंडल पे आभा,
फूल सा सुन्दर ये तन तुमसे। "

..........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-२७.०६.२०१५ 
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Thursday 25 June 2015

♥♥शेष अभिव्यक्ति...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥शेष अभिव्यक्ति...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कुछ लिखने को बचा नहीं है, शेष नहीं कुछ अभिव्यक्ति को। 
जिसने मन को भेद दिया हो, कैसे भूलूँ उस व्यक्ति को। 
हर क्षण वो मेरे जीवन का, सौंप गये दुःख के चरणों में,
धुंआ, धुंआ है, चंहुओर ही, जुटा हुआ हूँ मैं मुक्ति को। 

मेरा मन नीरस नीरस है, मेरा दिल भारी भारी है। 
मेरे शब्दों को पीड़ा है, वक्तव्यों में लाचारी है। 
मेरे आँगन की तुलसी भी, झुलस गयी है बारूदों से,
लगता है मेरे जीवन की, छलनी छलनी ये क्यारी है। 

नहीं समझ आता मैं उनकी, कैसे बदलूं प्रवृत्ति को। 
कुछ लिखने को बचा नहीं है, शेष नहीं कुछ अभिव्यक्ति को... 

धवल रात होने का सपना, इन नयनों ने छोड़ दिया है। 
जो दर्पण उनको दिखलाये, उसको हमने तोड़ दिया है। 
"देव" चलो एकाकीपन की, बेला में पारंगत हो लें,
साथ भला वो क्या देंगे, जो मुझको दुख से जोड़ दिया है। 

जड़वत होकर देखा करता, मैं पीड़ा की आवृति को। 
कुछ लिखने को बचा नहीं है, शेष नहीं कुछ अभिव्यक्ति को। "


.....................चेतन रामकिशन "देव"……..................
दिनांक-२५.०६.२०१५ 
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Wednesday 24 June 2015

♥♥प्यासी रूह...♥♥

♥♥♥♥♥प्यासी रूह...♥♥♥♥♥♥
बिन तुम्हारे बहुत उदासी है। 
आँख गीली है, रूह प्यासी है। 

ऐसा लगता है मुझको तुम बिन क्यों,
जैसे के जिंदगी जरा सी है। 

घर भी सूना है और आँगन भी,
भीड़ अपनों की चाहें खासी है। 

न ही चन्दन में है महक तुम बिन,
फूल माला भी देखो वासी है। 

"देव" धरती तो भीगी बारिश में,
मेरे दिल की जमीन प्यासी है। "

......चेतन रामकिशन "देव"……… 
दिनांक-२५.०६.२०१५ 
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Saturday 20 June 2015

♥♥बेक़रारी ...♥♥

♥♥♥♥♥♥बेक़रारी ...♥♥♥♥♥♥
आँख में अश्क़, सांस भारी है। 
आज क्यों इतनी बेक़रारी है। 

बूढ़े माँ बाप तरसे रोटी को,
वैसे बेटों की जेब भारी है। 

प्यार उसको जहाँ में कैसे मिले,
जिसने ठोकर दिलों पे मारी है।

एक दिन छोड़कर के जाना है,
ये जमीं, मेरी न तुम्हारी है। 

भाई, भाई का, हो रहा दुश्मन,
तुम पे तलवार, मुझ पे आरी है। 

सारे जग में जो सबसे है बढ़कर,
वो दुआ, मेरी माँ की प्यारी है। 

"देव " तुम आये तो लगा मुझको,
चाँद ने पालकी उतारी है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-२०.०६.२०१५   
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Sunday 14 June 2015

♥♥बदहवास...♥♥

♥♥♥♥♥♥बदहवास...♥♥♥♥♥♥♥
भूख बाकी है, प्यास बाकी है। 
जिंदगी बदहवास बाकी है। 

मेरी आंखें भले दीये जैसी,
रौशनी की तलाश बाकी है। 

गूंजी शहनाई, गैर की खातिर,
बिन तेरे वो उदास बाकी है। 

देह मिट्टी की मिट गयी लेकिन,
याद का वो लिबास बाकी है। 

बिक गया घर शराब की लत में,
जाम का वो गिलास बाकी है। 

बेवफा है वो पर न जाने क्यों,
उसके आने की आस बाकी है। 

"देव" नफरत ने किसको क्या बख़्शा,
खून, चीखें हैं लाश बाकी है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-१५.०६.२०१५
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Friday 12 June 2015

♥♥दास्ताँ ...♥♥

♥♥♥♥♥♥दास्ताँ ...♥♥♥♥♥♥♥
दास्ताँ दर्द की सुनाने को। 
गीत बाकी हैं गुनगुनाने को। 

मेरी सेहत की फिक्र तुम न करो,
सांस बाकी हैं, आज़माने को। 

प्यार है मुझसे तो चली आओ,
ताक पे रखो, इस ज़माने को। 

रुपयों पैसों की तो नहीं ख्वाहिश,
नाम चाहता हूँ, मैं कमाने को।  

एक दिन में ही कुछ नहीं मिलता,
वक़्त लगता है, सब पे छाने को। 

सबकी खातिर तो फूल भी, रेशम,
एक मेरा दिल है, चोट खाने को। 

"देव" सुनकर के आह आ जाना,
जान वरना खड़ी है, जाने को। "

........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-१३.०६.२०१५
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Thursday 11 June 2015

♥♥मुग्ध बांसुरी ...♥♥

♥♥♥♥मुग्ध बांसुरी ...♥♥♥♥♥
प्रेम की मुग्ध बांसुरी की तरह। 
तुम तो सुन्दर हो एक परी की तरह। 
तुम ही भावों का केंद्र बिंदु हो,
मेरे जीवन में तुम धुरी की तरह। 

तुमसे मिलने का मन बहुत होता,
बिन तुम्हारे मिलन नहीं होता। 
मेरे मुख पे उदासी छा जाये,
जब तेरा आगमन नहीं होता। 

चन्द्रमा तुमको न नकारेगा,
तुम तो लगती हो सुंदरी की तरह। 
तुम ही भावों का केंद्र बिंदु हो,
मेरे जीवन में तुम धुरी की तरह..... 

तुम नदी हो, मधुर मधुर जल है l
बिना तुम्हारे नहीं कोई हल है। 
"देव " बस हर घड़ी तेरा चेहरा,
तुमसे ही मेरे कर्म का बल है। 

तेरे वाचन में है शहद कोई,
तुम तो लगती हो रसभरी की तरह। 
तुम ही भावों का केंद्र बिंदु हो,
मेरे जीवन में तुम धुरी की तरह। "

........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-११.०६.२०१५
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Wednesday 10 June 2015

♥सूखे बाग़...♥

♥♥♥♥♥सूखे बाग़...♥♥♥♥♥
बंद कमरा, मकान खाली है। 
बाग़ सूखे, उदास माली है। 

प्यार किससे करूँ, बता तो सही,
आज हर दिल में तंगहाली है। 

मुझको झाडी में फ़ेंक या अपना,
जान क़दमों में तेरे डाली है। 

उनका काला वो धन सफेदी पर,
मेरी मेहनत का दाम जाली है। 

उनसे मिलके भी क्या सुलह करनी,
जिनकी नीयत तमाम काली है। 

कैसा दस्तूर, फूल के बदले,
उसने तलवार एक निकाली है। 

"देव" एक पल का भी भरोसा नहीं,
तुमने क्यों कल पे बात टाली है। "

........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-११.०६.२०१५
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Monday 8 June 2015

♥♥उपचार…♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥उपचार…♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरे भाव को रुग्ण कहा तो, कोई क्यों उपचार दिया न। 
मैं भी मानव था तुम जैसा, क्यों मेरा सत्कार किया न। 
क्या बस खुद पीड़ा व्यापक, और मेरा दुख अर्थहीन है,
तो फिर था मैं नाम का साथी, तुमने मुझको प्यार किया न। 

प्रेम के पथ पर चलने वाले, अलग अलग से कब होते हैं। 
घाव भले हो एक पक्ष को, मगर परस्पर मन रोते हैं। 
अर्थ प्रेम का होता जग में, त्याग के मैं को हम बन जाना,
नयन चार और दो मुखमंडल, पर सपने एकल होते हैं। 

पाषाणों का शिल्प किया पर, क्यों मेरा श्रृंगार किया न। 
मेरे भाव को रुग्ण कहा तो, कोई क्यों उपचार दिया न ... 

मेरे तन की त्वचा को मिटटी, और खुद को मलमल कहते हो। 
जरा बताओ किस दृष्टि से, समरसता में तुम रहते हो। 
"देव" मुखों पर श्वेत रंग को, मलकर चाँद बना न जाये,
मंच पे आकर सच का अभिनय, और पीछे मिथ्या कहते हो। 

दो तन थे, यदि एक प्राण हम, क्यों संग में विषधार पिया न। 
मेरे भाव को रुग्ण कहा तो, कोई क्यों उपचार दिया न। "

....................चेतन रामकिशन "देव"……................
दिनांक-०९.०६.२०१५
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Sunday 7 June 2015

♥♥रंगहीन...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥रंगहीन...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
 मन का क्षेत्र बहुत घायल है और नयनों में व्यापक जल है। 
झुलस गयीं हैं अधर पंखुड़ी और चित्त में कोलाहल है। 
चिंतित चिंतन की रेखायें, मानवता का अंत देखकर,
भाव यहाँ दोहन की वस्तु, और यहाँ अपनों का छल है। 

प्रेम के बदले यहाँ दंड है, तरह तरह के मानक होते। 
लोग किसी के जीवन में क्यों, पीड़ाओं के अंकुर बोते। 
प्राण निकलते हैं बिंद बिंद कर, और सभी करते अनदेखा।
औरों पर आरोप लगाते, भूल के अपना लेख जोखा। 

मदिरा की प्याली कैसे, कह दूंगा मैं गंगाजल है। 
मन का क्षेत्र बहुत घायल है और नयनों में व्यापक जल है... 

केश रंग से हीन हो गये, ऊर्जा, क्षमता मंद हो गयी। 
एक उजाले की खिड़की थी, वो भी अब तो बंद हो गयी। 
"देव" जहाँ में मुझको मिटटी, और उनको रेशम कहते हैं। 
हमे ज्ञात किन अवस्थाओं में, हम देखो पीड़ा सहते हैं। 

अब लगता है हर एक मंजिल, मेरी दृष्टि से ओझल है। 
मन का क्षेत्र बहुत घायल है और नयनों में व्यापक जल है। " 


....................चेतन रामकिशन "देव"……................
दिनांक-०७.०६.२०१५
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Saturday 6 June 2015

♥दीवार...♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दीवार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जो चाहत रूह तक पहुंचे, नहीं अब प्यार वो शायद।
खड़ी रिश्तों के आँगन में, कोई दीवार है शायद।

वो माँ है बेटियों की ओर, मुंह कर सोच में डूबी,
पढ़ा उसने सना खूँ से, अभी अखबार है शायद।

हैं अपने मुल्क में भूखे, लटक जाते हैं कड़ियों पर,
मगर गैरों को दौलत दे, अजब सरकार है शायद।

जो लफ़्ज़ों का मसीहा हो, लिखे आवाज़ रूहों की,
कलमकारों में क्या ऐसा, कोई खुद्दार है शायद।

अमन की बात करते हैं, मेरे दिल में छुरा घोंपें,
यही देखा है लोगों का, छुपा किरदार है शायद।

मसल देते हैं पल भर में, किसी का फूल जैसा दिल,
मोहब्बत अब ज़माने में, कोई व्यापार है शायद।

सजा है बेगुनाहों को,  गज़ब कानून की फितरत,
यहाँ कातिल की चोखट पर, सजा दरबार है शायद।

मुझे इलज़ाम देते हैं, मेरी आँखों को भी पानी,
ग़मों की हर घड़ी देखो, ये पैदावार है शायद।

नहीं सुनता हूँ अब दिल की, सुनो मैं "देव" पत्थर का,
थपेड़े दर्द के सहना, मेरा संसार है शायद। "

.....चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-०७.०६.२०१५
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Wednesday 3 June 2015

♥♥उजाले...♥♥

♥♥♥♥♥♥उजाले...♥♥♥♥♥♥♥
अपने आंसू मेरे हवाले करो। 
जिंदगानी में तुम उजाले करो। 

जो मेरे लफ्ज़ तुमको दुख देते,
फूंककर उनके रंग काले करो।  

दर्द तेरा मुझे भी होता है,
अपने पांवों में तुम न छाले करो। 

मेरी खातिर क्यों इस कदर अर्पण,
खुद को रोटी के न यूँ लाले करो। 

तुमको गिरने नहीं मैं दूंगा सुनो,
खुद को इतने भी न संभाले करो। 

प्यार है मुझसे तो कहो खुलकर,
अपने होठों पे यूँ न ताले करो। 

"देव" तेरा वजूद अम्बर सा,
मेरे क़दमों में सर न डाले करो। "

.....चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-०३.०६.२०१५ 
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Tuesday 2 June 2015

♥प्रेम-दर्शन...♥

♥♥♥♥♥♥प्रेम-दर्शन...♥♥♥♥♥♥♥♥
चित्त हर्षित हो, भाव खिल जाये। 
प्रेम की गंध मुझमे घुल जाये। 
तेरे दर्शन निकट से होंगे जब,
चन्द्रमा मानो मुझको मिल जाये। 

प्रेम के पथ पे होगा जब भी मिलन। 
मन से फूटेंगी भावना की किरन। 
शब्द धीमे से लाज खायेंगे,
बोलते पर रहेंगे अपने नयन। 

प्रेम रंगों से चित्रकारी हो,
चित्र परिणय दिशा में ढ़ल जाये।  
तेरे दर्शन निकट से होंगे जब,
चन्द्रमा मानो मुझको मिल जाये। 

तुम कथन प्रेम का जो व्यक्त करो। 
कांपते अधरों को सशक्त करो। 
हर दिवस रात मेरे साथ रहो,
खुद को क्षण भर भी न विलुप्त करो। 

रूप उज्जवल ये देखकर तेरा,
हर दिशा का तिमिर भी धुल जाये। 
तेरे दर्शन निकट से होंगे जब,
चन्द्रमा मानो मुझको मिल जाये। 

तुम ही सौंदर्य हो कविता का। 
तुम ही प्रभाव को सुचिता का। 
"देव" तुमसे हो मन मेरा शीतल,
तुम ही आधार हो सरिता का। 

प्रेम अपना जो होगा ताकतवर,
देखो चट्टान तक भी हिल जाये।  
तेरे दर्शन निकट से होंगे जब,
चन्द्रमा मानो मुझको मिल जाये। "

.....चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-०२.०६.२०१५ 
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