♥♥♥♥♥♥♥♥ इंतजार की आंच...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मुझ बिन तरस रहा होगा वो, रोकर बरस रहा होगा वो।
इंतजार की आंच में देखो, कैसे झुलस रहा होगा वो।
मुझको तो एक लम्हे को भी, खाली आँगन नहीं सुहाता,
नहीं पता कि तनहा कैसे, सालों-बरस रहा होगा वो।
पेड़ से कोई पत्ता टूटे, देखके डाली भी रोती है।
यदि कोई अपना बिछड़े तो, आँख भले ये कब सोती है।
कांटो के बिस्तर सी यादें, उसको पल पल चुभती होंगी,
मिलना चाहा, नहीं मिल सके, शायद ये किस्मत होती है।
नशा न उतरा आज भी उसका, शायद चरस रहा होगा वो।
नहीं पता कि तनहा कैसे, सालों-बरस रहा होगा वो ....
होती है तकलीफ बहुत ही, जुदा यदि चाहत होती है।
नहीं चैन मिल पाता दिल को, और नहीं राहत होती है।
"देव " मुझे मालूम है लेकिन, मेरे हाथ में वक़्त नहीं है,
वक़्त यदि जो रुख बदले तो, रूह यहाँ आहत होती है।
बारिश के बिन कड़ी धूप में, व्याकुल, उमस रहा होगा वो।
नहीं पता कि तनहा कैसे, सालों-बरस रहा होगा वो। "
........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-२३.०९.१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "