♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥अंगारे...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
काटी रात जहर पीकर के, अब दिन में भी अंगारे हैं।
झूठ की हिस्सेदारी जीती, और सच के प्रहरी हारे हैं।
अपना मुख अमृत से भरकर, मुझको सौंपे ग़म के प्याले,
मेरे घर को दिया अँधेरा, खुद के घर में उजियारे हैं।
नहीं पता क्यों लोग जहाँ के, इतने पत्थर हो जाते हैं।
उनपे कुछ भी नहीं बीतती, घायल मरकर सो जाते हैं।
बड़ी कष्ट की तिमिर की बेला, घर आँगन में अंधियारे हैं।
काटी रात जहर पीकर के, अब दिन में भी अंगारे हैं......
बस उपहास किया करते हैं, वो अपने झूठे तथ्यों पर।
तेज बोलकर दिखलाते हैं, वो अपने हितकर कथ्यों पर।
"देव" किसी की आह सुनें न, बस स्वयंभू हो जाते हैं,
उनको मतलब नहीं किसी से, दृष्टि खुद के मंतव्यों पर।
दंड दिया है लेकिन कहते, हम तो किस्मत के मारे हैं।
काटी रात जहर पीकर के, अब दिन में भी अंगारे हैं। "
.........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-०७.०७.२०१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित।
काटी रात जहर पीकर के, अब दिन में भी अंगारे हैं।
झूठ की हिस्सेदारी जीती, और सच के प्रहरी हारे हैं।
अपना मुख अमृत से भरकर, मुझको सौंपे ग़म के प्याले,
मेरे घर को दिया अँधेरा, खुद के घर में उजियारे हैं।
नहीं पता क्यों लोग जहाँ के, इतने पत्थर हो जाते हैं।
उनपे कुछ भी नहीं बीतती, घायल मरकर सो जाते हैं।
बड़ी कष्ट की तिमिर की बेला, घर आँगन में अंधियारे हैं।
काटी रात जहर पीकर के, अब दिन में भी अंगारे हैं......
बस उपहास किया करते हैं, वो अपने झूठे तथ्यों पर।
तेज बोलकर दिखलाते हैं, वो अपने हितकर कथ्यों पर।
"देव" किसी की आह सुनें न, बस स्वयंभू हो जाते हैं,
उनको मतलब नहीं किसी से, दृष्टि खुद के मंतव्यों पर।
दंड दिया है लेकिन कहते, हम तो किस्मत के मारे हैं।
काटी रात जहर पीकर के, अब दिन में भी अंगारे हैं। "
.........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-०७.०७.२०१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित।