♥♥♥अपनों की दुश्मनी ♥♥
अपने भी अब बदल रहे हैं!
ख़ुशी के लम्हे फिसल रहे हैं!
आज ग़मों की आंच पे देखो,
दिल के आंसू उबल रहे हैं!
जिसे यहाँ अपना माना था!
जिसका दर्द सदा जाना था!
उसी ने बख्शे आंख को आंसू,
जिसके संग में मुस्काना था!
उसका दिल बेशक न पिघले,
लेकिन पत्थर पिघल रहे हैं!
अपने भी अब बदल रहे हैं!
ख़ुशी के लम्हे फिसल रहे हैं!
उनको अपना चैन मुबारक,
उन्हें मुबारक अपना सोना!
वो क्या जानें किसी की पीड़ा,
वो क्या जानें किसी का रोना!
"देव" आज तो हर तरफ़ा से,
दर्द के पत्थर उछल रहे हैं!
अपने भी अब बदल रहे हैं!
ख़ुशी के लम्हे फिसल रहे हैं!"
.. (चेतन रामकिशन "देव") ..