Tuesday 5 May 2015

♥ बेजुबान... ♥

♥ ♥ ♥ ♥ बेजुबान... ♥ ♥ ♥ ♥
झूठ पे इत्मीनान करना पड़ा। 
खुद को ही बेजुबान करना पड़ा। 

जलजले ने उजाड़े घर जब से,
आसमां को मकान करना पड़ा। 

मेरे कातिल वो, पर मेरी चाहत,
उनके हक़ में बयान करना पड़ा। 

हारके जिंदगी से मरना नहीं,
गिरते गिरते उठान करना पड़ा। 

वक़्त न ली जो आज फिर करवट,
उनको मेरा बखान करना पड़ा। 

बेइमां कहके वो मुझे खुश थे,
आप छलनी, ईमान करना पड़ा। 

"देव" जिंदा पे तो हुई न कदर, 
खुद को मरकर, महान करना पड़ा। "

.........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक- ०६.०५.२०१५