Monday, 10 June 2013

♥♥बेटी(धरती की परी).♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥बेटी(धरती की परी).♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी!
एक मानव के जीवन पथ में, फूलों जैसी डगर है बेटी!
जिस आंगन में बेटी न हो वो, उस घर में रहती नीरसता,
कड़ी धूप में जलधारा की, एक मनभावन लहर है बेटी!

बेटी की तुलना बेटों से, करके उसको कम न आंको!
बेटी है बेटों से बढ़कर, कभी रूह में उसकी झांको!

वो कविता का भावपक्ष है, किसी गज़ल की बहर है बेटी!
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी...

जन्मकाल से ही बेटी को, कुदरत से ये गुण मिलते हैं!
बचपन से ही उसके मन में, नम्र भाव के गुल खिलते हैं!
बेटी के मन में बहता है, सहनशीलता का एक सागर,
नहीं आह तक करती है वो, भले ही उसके हक छिलते हैं!

बेटी तो है ज्योति जैसी, वो घर में उजियारा करती!
वो चिड़ियों की तरह चहककर, घर आंगन को प्यारा करती!

बेटे यहाँ बदल जायें पर, अपनी आठों पहर है बेटी!
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी....

आशाओं की ज्योति है वो, पूनम जैसी निशा है बेटी!
अंतर्मन को सुख देती है, कुदरत की वो दुआ है बेटी!
"देव" जहाँ में बेटी जैसा, कोई अपना हो नहीं सकता,
किसी मनुज के बिगड़े पथ की, सही सार्थक दिशा है बेटी!

बेटी है तो घर सुन्दर है, बिन बेटी के घर खाली है!
बेटी है तो खिला है उपवन, बेटी है तो हरियाली है!

हंसकर वो कुर्बानी देती, ऐसा पावन रुधिर है बेटी!
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी!"


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बेटी-एक ऐसा चरित्र, जिसके बिना किसी मनुज का जीवन पूर्ण नही होता, जिसकी किलकारी के बिना, जिसकी चहक के बिना, कोई घर सम्पूर्ण नहीं होता, वो ऐसा चरित्र जो अपने हर सुख का दमन करते हुए, अपने परिजनों के लिए अपने रुधिर की एक एक बूंद तक कुर्बान कर देती है, तो आइये कुदरत के ऐसा अनमोल चरित्र "बेटी" का सम्मान करें!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-११.०६.२०१३ 

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♥♥मेरे जज्बात..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मेरे जज्बात..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
काश मेरे जजबातों को तुम, पढ़ लेते मन की आँखों से,
फिर न तुमको रत्ती भर भी, कभी शिकायत होती मुझसे!

तुमने कैसे सोच लिया के, अदल बदल कर मैं जीता हूँ,
मैं जैसा हूँ, मैं वैसा हूँ, नहीं बनावट होती मुझसे!

तू जितना भी दर्द मुझे दे, मैं उफ तक भी नहीं करूँगा,
क्यूंकि रूहानी रिश्तों की, नहीं बगावत होती मुझसे!

नाम प्यार का भले नहीं दो, पर तू मेरा दर्द समझना,
तेरी दुआ के बिन जीवन की, नहीं हिफाजत होती मुझसे!

जो एक पल भी मिला चैन का, उससे अपनी झोली भर ली,
मानवता के नाम पे देखो, नहीं तिजारत होती मुझसे!

जो मेरा दिल कहता है मैं, उसको ज्यों का त्यों लिखता हूँ,
किसी लफ्ज के साथ झूठ की, नहीं सजावट होती मुझसे!

तूने मुझको "देव" अगर जो, कातिल अपना मान लिया तो,
खुद को फांसी लटका दूंगा, नहीं रियायत होती मुझसे!"

................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-१०.०६.२०१३