♥♥♥♥♥♥♥♥♥शब्दों का श्रृंगार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
शब्दों का श्रृंगार बनो तुम, मैं कविता रचना चाहता हूँ।
बिना तुम्हारे न जाने क्यों, लिखने से बचना चाहता हूँ।
मेरे शब्दों को अपना लो, बस मेरी इतनी सी ख्वाहिश,
न पुस्तक की मुझे तमन्ना, और नहीं छपना चाहता हूँ ,
तुम इतनी पावन प्यारी हो, शब्द समर्पित तुमको कर दूँ।
मन करता तेरे आँचल में, भावों का जल अर्पित कर दूँ।
तुम्हें मानकर प्रेम की देवी, नाम तेरा जपना चाहता हूँ।
शब्दों का श्रृंगार बनो तुम, मैं कविता रचना चाहता हूँ।
शब्द कोष के हर पन्ने में, तुम मुझको प्रेरित करती हो।
तुम हो मेरी अनुभूति में, हर क्षण मेरा हित करती हो।
"देव" तुम्हारा प्रेम परिचय, कविता का आधार बन गया,
तुम शब्दों का अलंकार बन, मेरा मन मोहित करती हो।
शायद प्रेम इसी को कहते, सब कुछ पूर्ण निहित होता है।
जब देनी हो प्रेम परीक्षा, तब विष भी अमृत होता है।
हम तुम दोनों साथ रहें बस, मैं ऐसा सपना चाहता हूँ।
शब्दों का श्रृंगार बनो तुम, मैं कविता रचना चाहता हूँ। "
........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-१२.०९.१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "
शब्दों का श्रृंगार बनो तुम, मैं कविता रचना चाहता हूँ।
बिना तुम्हारे न जाने क्यों, लिखने से बचना चाहता हूँ।
मेरे शब्दों को अपना लो, बस मेरी इतनी सी ख्वाहिश,
न पुस्तक की मुझे तमन्ना, और नहीं छपना चाहता हूँ ,
तुम इतनी पावन प्यारी हो, शब्द समर्पित तुमको कर दूँ।
मन करता तेरे आँचल में, भावों का जल अर्पित कर दूँ।
तुम्हें मानकर प्रेम की देवी, नाम तेरा जपना चाहता हूँ।
शब्दों का श्रृंगार बनो तुम, मैं कविता रचना चाहता हूँ।
शब्द कोष के हर पन्ने में, तुम मुझको प्रेरित करती हो।
तुम हो मेरी अनुभूति में, हर क्षण मेरा हित करती हो।
"देव" तुम्हारा प्रेम परिचय, कविता का आधार बन गया,
तुम शब्दों का अलंकार बन, मेरा मन मोहित करती हो।
शायद प्रेम इसी को कहते, सब कुछ पूर्ण निहित होता है।
जब देनी हो प्रेम परीक्षा, तब विष भी अमृत होता है।
हम तुम दोनों साथ रहें बस, मैं ऐसा सपना चाहता हूँ।
शब्दों का श्रृंगार बनो तुम, मैं कविता रचना चाहता हूँ। "
........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-१२.०९.१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "