♥♥♥♥♥♥♥♥♥निर्धन की बेटी....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
चन्द्र किरण जैसी बेटी का, रिश्ता जाने कैसे तय हो!
सोच रहा है निर्धन कैसे, महंगाई में दूल्हा क्रय हो!
बिना दहेज़ के निर्धन की बेटी का, साथी कौन बनेगा!
धन-दौलत की भीड़ में कोई, उस निर्धन को कहाँ चुनेगा!
हर दूल्हे की कीमत देखों, लाखों रूपये से ऊपर है,
निर्धन की बेटी की पीड़ा, विक्रय दूल्हा कहाँ सुनेगा!
निर्धन बेटी सोच रही है, कब उसका जीवन सुखमय हो!
चन्द्र किरण जैसी बेटी का, रिश्ता जाने कैसे तय हो.....
धन-दौलत की आकांक्षा है, न उनको गुणवान चाहिए!
वो चाहें बस मोटर गाड़ी, न उनको सम्मान चाहिए!
ऐसे बिकने वाले दुल्हे, खुद से नजर मिलायें कैसे,
जिनको न ही रूह का रिश्ता, जिनको न ईमान चाहिए!
निर्धन बेटी सोच रही है, दूर भला कब उसका भय हो!
चन्द्र किरण जैसी बेटी का, रिश्ता जाने कैसे तय हो.....
निर्धन रोता फूट फूट कर और बेटी की आंख भी नम है!
कितना भी दे दो दूल्हे को, फिर भी उसको लगता कम है!
"देव" दहेज़ का दानव जाने, कब तक जीवित रहेगा यूँ ही,
सोच सोच कर ही निर्धन का, जीते जी ही निकला दम है!
न जाने कब देवी रूपी, इस प्यारी बेटी की जय हो!
चन्द्र किरण जैसी बेटी का, रिश्ता जाने कैसे तय हो!"
" समाज में दहेज़ कलंक बनता जा रहा है, धन कुबेरों और धनिक वर्ग के द्वारा दहेज़ की परंपरा को प्रसारित किये जाने से यह संकट अब निर्धन और छोटे परिवारों को भी घेरने लगा है! समाज में दहेज़ के सम्बन्ध में अनेकों ह्रदय विदारक घटनायें दिन प्रतिदिन घट रही हैं, लेकिन सोचना होगा, दहेज़ कोई वरदान नहीं है, अपने हाथों में काम करने की शक्ति हो तो, हम स्वयं भी अपना घर भर सकते हैं!"
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०४.०७.२०१२