Saturday, 28 November 2015

♥♥देश टुकड़ों में...♥♥

♥♥♥♥♥देश टुकड़ों में...♥♥♥♥♥♥
देश टुकड़ों में बंट रहा फिर से। 
आपसी प्यार घट रहा फिर से। 

जिसकी छाँव में कोई फर्क नहीं,
पेड़ वो आज कट रहा फिर से। 

दिन दहाड़े भी अब सताये डर,
नाम इज़्ज़त का लुट रहा है फिर से। 

न बुरे वक़्त में कोई आया,
झुंड झूठों का छंट रहा फिर से। 

तोड़ना चाहें, कोई जोड़े नहीं,
हर कोई रंज रट रहा फिर से। 

लफ्ज़ जो दूरियां बढ़ाने लगें,
हर कोई उनपे डट रहा फिर से। 

"देव" इंसानियत बचेगी कहाँ,
बम ये नफरत का फट रहा फिर से। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२८.११.२०१५ 
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