♥♥♥♥♥♥♥♥घातक...♥♥♥♥♥♥♥♥
विस्फोटक की संज्ञा देकर, मुझको घातक सिद्ध कर दिया।
मुझको खलनायक सा आखिर क्यों करके प्रसिद्द कर दिया।
क्या अपने अधिकार के स्वर को, गुंजित करना यहाँ गलत है,
दीवारों पे अपराधी लिख, क्यों मुझको संलिब्ध कर दिया।
ये तो घोर दमन के क्षण हैं, अभिव्यक्ति मारी जाती है।
नायक की युद्धक क्षमता भी, देखो बेकारी जाती है।
शत्रु, भ्रष्टाचारी, लोभी को मिलता सम्मान यहाँ पर,
हत्यारे तो विजयी हो रहे, मानवता हारी जाती है।
निर्दोषी जीवन गतियों को, जबरन क्यों अवरुद्ध कर दिया।
विस्फोटक की संज्ञा देकर, मुझको घातक सिद्ध कर दिया।
क्यों आखिर दुष चलन हो रहा, क्या सज्जनता अभिशापी है।
क्या मिथ्या है पुण्य का बिंदु, क्या पूजन हेतु पापी है।
खंडित किया जा रहे सपने, ताकत का प्रभाव बनाकर,
जाति, हिंसा, लूट मार की, चंहुओर आपाधापी है।
गंगा सा पावन होकर भी, रेखांकन संदिग्ध कर दिया।
विस्फोटक की संज्ञा देकर, मुझको घातक सिद्ध कर दिया।
अब अपनायत किससे रखें, किससे मन की पीर बताएं।
लोग यहाँ पर अम्ल छिड़ककर, हँसते चेहरों को झुलसाएं।
" देव " तपस्या कितनी कर लो, कितना कर लो करुण निवेदन,
हत्यारे हैं, कमजोरों के जीवित तन में आग लगाएं।
अब चुप हूँ पर शत्रु मर्दन, करूँगा जिस दिन युद्ध कर दिया।
विस्फोटक की संज्ञा देकर, मुझको घातक सिद्ध कर दिया। "
......चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक- 22 09 2017
(मेरी यह रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित, सर्वाधिकार सुरक्षित )