Tuesday, 24 September 2013

♥♥बेघर..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥बेघर..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
करोड़ों हाथ खाली हैं, करोड़ों लोग बेघर हैं!
भला कैसे कहें हम, देश के हालात बेहतर हैं!
बड़ा मायूस है निर्धन, कोई सुनता नहीं उसकी,
यहाँ तो उसके हिस्से में, महज आंसू के जेवर हैं!

खुले आकाश में भूखे पड़े, न नींद आती है!
यहाँ नेता, नहीं अफसर कोई, निर्धन का साथी है!

यहाँ देखो सभी रहजन, नहीं दिखते के रहबर हैं!
करोड़ों हाथ खाली हैं, करोड़ों लोग बेघर हैं….

यहाँ बेकारी है इतनी, युवाओं में हताशा है!
नहीं उम्मीद बाकी है, बड़ी ही क्षीण आशा है!
यहाँ निर्धन दवाओं के बिना, मर जाते हैं पल में,
भरा निर्धन के जीवन, गमों का बस कुहासा है!

कभी रुखी, कभी सूखी ही, रोटी से गुजारा है!
बहे निर्धन की आँखों से, यहाँ आंसू की धारा है!

यहाँ निर्धन की राहों में, के कांटे हैं, के नश्तर हैं!
करोड़ों हाथ खाली हैं, करोड़ों लोग बेघर हैं...

यहाँ निर्धन के चेहरे पर, हताशा है, उदासी है!
नहीं निर्धन के जीवन में, खुशी देखो जरा सी है!
सुनो तुम "देव" क्यूँ निर्धन से, ऐसे पेश आते हो,
ये निर्धन भी तो अपना है, इसी धरती का वासी है!

नहीं मालूम के निर्धन के, ये हालात कब तक हों!
नहीं मालूम उसके दुख भरे, दिन रात कब तक हों!

यहाँ निर्धन अँधेरे में, वहां खुशियों के अवसर हैं!
करोड़ों हाथ खाली हैं, करोड़ों लोग बेघर हैं!"


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निर्धन, इस शब्द का बोध मन को होते ही एक तस्वीर सामने आती है, जो तस्वीर फटे पुराने चिथड़ों में रुखी सूखी खाकर जीने की मार सहती है! अगर वो निर्धन है तो ये उसका अपराध नहीं है, देश के शासक वर्ग का ये दायित्व है कि, वो अपनी अच्छी नीतियों के द्वारा देशवासियों को उनकी मौलिक आवश्यकतायें दे, तो आइये चिंतन करें!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२५.०९.२०१३

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