♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम-भाव.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सखी जगे हैं जब से मन में, तेरी प्रीत के भाव!
तब से मन में नहीं रहा है, हिंसा का प्रभाव!
सुखमय रहता है मेरा मन, जलें हर्ष के दीप,
सखी तुम्हारे प्रेम से पाया, जीवन में सद्भाव!
मन भी पावन हो जाता है, जब मिलता है प्यार!
सखी प्रेम से रच जाता है, सपनों का संसार!
सखी प्रेम से भर जाते हैं, दुःख के गहरे घाव!
सखी जगे हैं जब से मन में, तेरी प्रीत के भाव..
रंग बिरंगी, सतरंगी किरणों का हो प्रवेश!
सखी प्रेम से धूमिल होता, हिंसा और आवेश!
सखी प्रेम की छाँव से होता बैर-भाव का अंत,
सखी प्रेम से शीश दमकता, लहराते हैं केश!
सखी प्रेम की अनुभूति है, दुनिया में अनमोल!
सखी प्रेम से स्फुट होते, मुख से मीठे बोल!
सखी प्रेम से मिट जाते हैं, सब मैले मनोभाव!
सखी जगे हैं जब से मन में, तेरी प्रीत के भाव..
सखी प्रेम की हरियाली से, चलो करो श्रृंगार!
सखी प्रेम के कंगन पहनो, सखी प्रेम के हार!
सखी तुम्हारे रूप में देखो, निहित हुआ है प्रेम,
सखी "देव" को मोहित करती, प्रेम की ये रस धार!
सखी प्रेम से मृत होता है, अभिमान का दंश!
सखी प्रेम से रंग दें आओ, जीवन का हर अंश!
प्रेम से शोधन हुआ है मन का, धवल हुए दुर्भाव!
सखी जगे हैं जब से मन में, तेरी प्रीत के भाव!"
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प्रेम-संसार में बढ़ते जा रही हिंसा, अमानवीयता को समाप्त करने/ कम करने के लिए प्रेम ही एक सशक्त माध्यम है! मेरी कविता को सखी के इर्द-गिर्द रचने का मकसद ये नही कि, प्रेम सिर्फ सखी का पर्याय है! प्रेम जीवन के प्रत्येक सम्बन्ध के लिए आवश्यक है!"
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२४.१०.२०१२
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