Monday, 9 September 2013

♥पीड़ा का विध्वंस.

♥♥♥♥♥♥♥♥पीड़ा का विध्वंस...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
भाव पक्ष अश्रु से भीगा, करुण पक्ष में मन रोया है!
जिसको बहुत निकट समझा था, वही भीड़ में क्यूँ खोया है!
अनुभूति की फसल पकेगी, कैसे अपने मन से कह दूँ,
मिटटी ने भी उगला उसको, मैंने जो अंकुर बोया है!

बहुत निवेदन किया था मैंने, और आस्था बतलाई थी!
और दशा इस पीड़ित मन की, मैंने उसको दिखलाई थी!
एक क्षण को भी उसने देखो, नीर नहीं सोखा आँखों से,
मैंने जिसकी अभिवादन में, सुख की दौलत ठुकराई थी!

तन की दशा हुयी जड़वत है, न जागा ये, न सोया है!
भाव पक्ष अश्रु से भीगा, करुण पक्ष में मन रोया है….

कभी भूल से भी न उसको, तनिक क्षति भी पहुंचाई थी!
जिसको मैंने सही गलत की, व्यापक नीति समझाई थी!
"देव" मगर उस अपने ने ही, मार दिया है अनुभूति को,
जिसको मैंने अपनी पीड़ा और व्याकुलता बतलाई थी!

नहीं मिला कोई भी अपना, स्वयं ही अपना शव ढ़ोया है!
भाव पक्ष अश्रु से भीगा, करुण पक्ष में मन रोया है!"

..................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-०९.०९.२०१३