♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दास्ताँ दर्द की....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दास्ताँ दर्द की लिखी मैंने, पास आ जाओ मैं सुना दूंगा!
मेरे दिल में हैं कितने घाव बने, आओ तुमको सभी गिना दूंगा!
बैठने को जगह नहीं तो क्या, मैं ख्यालों के घर बना दूंगा!
धीरे धीरे ही मगर सुनते रहो, पूरी ही ज़िन्दगी सुना दूंगा!
मेरे पैरों में कंकरों की चुभन, घाव रिस रिस के यहाँ बहते हैं!
कल तलक जो मेरे अपने थे यहाँ, आज गैरों की तरह रहते हैं!
प्यास की तुम न यहाँ फ़िक्र करो, आंसुओं की नदी बना दूंगा!
दास्ताँ दर्द की लिखी मैंने, पास आ जाओ मैं सुना दूंगा!
लोग पल भर में यहाँ देखो तो, मौसमों की तरह बदल जायें!
छोड़कर राह वो हमदर्दी की, देखकर दूर से निकल जायें!
"देव" वो आग न बुझाते हैं, लोग बेशक ही यहाँ जल जायें!
कोई घावों पे न रखे मरहम , अंग बेशक ही यहाँ गल जायें!
कोई आवाज़ नहीं सुनता है, कोई न दर्द को सहारा दे!
पार कर लेते हैं नदी सब पर, कोई डूबे को न किनारा दे!
दर्द को तुम जो नहीं जानो अगर, उसकी तस्वीर मैं बना दूंगा!
दास्ताँ दर्द की लिखी मैंने, पास आ जाओ मैं सुना दूंगा!"
…........................चेतन रामकिशन "देव"………...............
दिनांक-०६.१०.२०१३
दास्ताँ दर्द की लिखी मैंने, पास आ जाओ मैं सुना दूंगा!
मेरे दिल में हैं कितने घाव बने, आओ तुमको सभी गिना दूंगा!
बैठने को जगह नहीं तो क्या, मैं ख्यालों के घर बना दूंगा!
धीरे धीरे ही मगर सुनते रहो, पूरी ही ज़िन्दगी सुना दूंगा!
मेरे पैरों में कंकरों की चुभन, घाव रिस रिस के यहाँ बहते हैं!
कल तलक जो मेरे अपने थे यहाँ, आज गैरों की तरह रहते हैं!
प्यास की तुम न यहाँ फ़िक्र करो, आंसुओं की नदी बना दूंगा!
दास्ताँ दर्द की लिखी मैंने, पास आ जाओ मैं सुना दूंगा!
लोग पल भर में यहाँ देखो तो, मौसमों की तरह बदल जायें!
छोड़कर राह वो हमदर्दी की, देखकर दूर से निकल जायें!
"देव" वो आग न बुझाते हैं, लोग बेशक ही यहाँ जल जायें!
कोई घावों पे न रखे मरहम , अंग बेशक ही यहाँ गल जायें!
कोई आवाज़ नहीं सुनता है, कोई न दर्द को सहारा दे!
पार कर लेते हैं नदी सब पर, कोई डूबे को न किनारा दे!
दर्द को तुम जो नहीं जानो अगर, उसकी तस्वीर मैं बना दूंगा!
दास्ताँ दर्द की लिखी मैंने, पास आ जाओ मैं सुना दूंगा!"
…........................चेतन रामकिशन "देव"………...............
दिनांक-०६.१०.२०१३