Saturday 5 October 2013

♥♥♥दास्ताँ दर्द की....♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दास्ताँ दर्द की....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दास्ताँ दर्द की लिखी मैंने, पास आ जाओ मैं सुना दूंगा!
मेरे दिल में हैं कितने घाव बने, आओ तुमको सभी गिना दूंगा!
बैठने को जगह नहीं तो क्या, मैं ख्यालों के घर बना दूंगा!
धीरे धीरे ही मगर सुनते रहो, पूरी ही ज़िन्दगी सुना दूंगा!

मेरे पैरों में कंकरों की चुभन, घाव रिस रिस के यहाँ बहते हैं!
कल तलक जो मेरे अपने थे यहाँ, आज गैरों की तरह रहते हैं!

प्यास की तुम न यहाँ फ़िक्र करो, आंसुओं की नदी बना दूंगा! 
दास्ताँ दर्द की लिखी मैंने, पास आ जाओ मैं सुना दूंगा!

लोग पल भर में यहाँ देखो तो, मौसमों की तरह बदल जायें!
छोड़कर राह वो हमदर्दी की, देखकर दूर से निकल जायें!
"देव" वो आग न बुझाते हैं, लोग बेशक ही यहाँ जल जायें!
कोई घावों पे न रखे मरहम , अंग बेशक ही यहाँ गल जायें!

कोई आवाज़ नहीं सुनता है, कोई न दर्द को सहारा दे!
पार कर लेते हैं नदी सब पर, कोई डूबे को न किनारा दे!

दर्द को तुम जो नहीं जानो अगर, उसकी तस्वीर मैं बना दूंगा!
दास्ताँ दर्द की लिखी मैंने, पास आ जाओ मैं सुना दूंगा!"
        
…........................चेतन रामकिशन "देव"………...............
दिनांक-०६.१०.२०१३

♥♥ये मौत भी देखो....♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ये मौत भी देखो....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ये मौत भी देखो है क्रूर कितनी, नहीं चीख सुनती, नहीं दर्द जाने!
नहीं रोते मुखड़ों से इसको मोहब्बत, और ये बिछड़ने की पीड़ा न जाने!
नहीं देखो मिन्नत सुने ये किसी की, नहीं देखो कोई निवेदन भी माने!
जड़ों को यहाँ दर्द होता है कितना, ये पौधे उखड़ने की पीड़ा न जाने!

मगर मौत सच है, ये आएगी निश्चित, नहीं मौत से हम यहाँ बच सकेंगे!
जब पूरी होंगी ये सांसें हमारी, नहीं सांस हाथों से हम रच सकेंगे!

ये मौत देखो चलाती है अपनी, नहीं तंज सुनती, नहीं सुनती ताने!
ये मौत भी देखो है क्रूर कितनी, नहीं चीख सुनती, नहीं दर्द जाने!

नहीं तन पे करना अभिमान लेकिन, मगर जीते जी खुद को मुर्दा न मानो!
जियो आखिरी सांस तक तुम यहाँ पर, के तुम खुद के जीवन के मतलब जानो!
सुनो "देव" सपने नहीं तोड़ना तुम, के आँखों में सपने सजाकर के रखना!
जो मरकर भी तुमको करे याद दुनिया, मोहब्बत की दुनिया वसाकर के रखना!

नहीं मौत से डर के जीना है तुमको, यहाँ मौत सच है, यही जानना है!
के हम सब हैं मिट्टी के पुतले यहाँ पर, यही सोचना है, यही मानना है!

बनो जीते जी कुछ यहाँ जिंदगी में, जो मरकर भी दुनिया तेरा नाम जाने!
ये मौत भी देखो है क्रूर कितनी, नहीं चीख सुनती, नहीं दर्द जाने!"

….......................चेतन रामकिशन "देव"………...................
दिनांक-०५.१०.२०१३