Sunday, 20 April 2014

♥♥♥प्यार का उन्वान...♥♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार का उन्वान...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हरफ़ तुम्ही से नूरानी है और ग़ज़ल की शान तुम्ही हो!
मेरे गीतों का, कविता का, हमदम ये उन्वान तुम्ही हो!
गहराई से समां गयीं तुम, मेरी रूह में, मेरे दिल में, 
नाम भले ही मेरा हो पर, मेरी हर पहचान तुम्ही हो!

तुम्हे देखकर हँस लेता हूँ, तुम्हे देखकर लिख लेता हूँ!
तुम्हे सोचकर घने स्याह में, चाँद सरीखा दिख लेता हूँ!

मुश्किल के हालातों में भी, मंजिल हर आसान तुम्ही हो!
हरफ़ तुम्ही से नूरानी है और ग़ज़ल की शान तुम्ही हो....

तुमसे मिलना अच्छा लगता, तुम्हे देखना मन को भाये! 
बिना तुम्हारे दिन सूना है और रात को नींद न आये!
"देव" तुम्हारे प्यार से बढ़कर, नहीं जहाँ में कुछ भी लगता,
इसीलिए तेरी खुशबु से, फूलों की रंगत खिल जाये!

बिना तुम्हारे आँगन सूना, सूना सूना घर होता है!
हाथ तुम्हारा चलूँ पकड़ कर, खो जाने का डर होता है!

मेरे तन की रक्त शिराओं और धड़कन की जान तुम्ही हो!
हरफ़ तुम्ही से नूरानी है और ग़ज़ल की शान तुम्ही हो!"

..................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-२०.०४.२०१४

♥♥खुशियों की लकीरें...♥♥

♥♥♥♥♥♥खुशियों की लकीरें...♥♥♥♥♥♥♥
क्यूँ मेरे हाथ में खुशियों की लकीरें कम हैं!
क्यूँ कड़क धूप में भी, आँख ये मेरी नम हैं!
क्या मैं इंसान नहीं, बुत या कोई पुतला हूँ,
क्यूँ मेरे खून में शामिल, ये हजारों ग़म हैं!

क्या मुझे हँसने का, खुश होने का हक़ कोई नहीं!
क्या मुझे चैन से सोने का भी, हक़ कोई नहीं!
क्यों उदासी पे मेरी लोग सवालात करें,
क्या मुझे खुलके यहाँ रोने का, हक़ कोई नहीं!

तोड़ दे कोई, क्यूँ ज़ज्बात मेरे, बेदम हैं!
क्यूँ मेरे हाथ में खुशियों की लकीरें कम हैं...

क्यों मेरी आह को सुनकर भी निकल जाते हैं!
लोग अपने भी यहाँ, देखो बदल जाते हैं!
"देव", नातों में, मोहब्बत में, हुई है ग़ुरबत,
मोम के रिश्ते हैं पल भर में पिघल जाते हैं!

भीड़ होकर भी हैं तन्हा, की अधूरे हम हैं!
क्यूँ मेरे हाथ में खुशियों की लकीरें कम हैं!"

............चेतन रामकिशन "देव".......