♥♥♥♥♥♥♥♥♥शेष अभिव्यक्ति...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कुछ लिखने को बचा नहीं है, शेष नहीं कुछ अभिव्यक्ति को।
जिसने मन को भेद दिया हो, कैसे भूलूँ उस व्यक्ति को।
हर क्षण वो मेरे जीवन का, सौंप गये दुःख के चरणों में,
धुंआ, धुंआ है, चंहुओर ही, जुटा हुआ हूँ मैं मुक्ति को।
मेरा मन नीरस नीरस है, मेरा दिल भारी भारी है।
मेरे शब्दों को पीड़ा है, वक्तव्यों में लाचारी है।
मेरे आँगन की तुलसी भी, झुलस गयी है बारूदों से,
लगता है मेरे जीवन की, छलनी छलनी ये क्यारी है।
नहीं समझ आता मैं उनकी, कैसे बदलूं प्रवृत्ति को।
कुछ लिखने को बचा नहीं है, शेष नहीं कुछ अभिव्यक्ति को...
धवल रात होने का सपना, इन नयनों ने छोड़ दिया है।
जो दर्पण उनको दिखलाये, उसको हमने तोड़ दिया है।
"देव" चलो एकाकीपन की, बेला में पारंगत हो लें,
साथ भला वो क्या देंगे, जो मुझको दुख से जोड़ दिया है।
जड़वत होकर देखा करता, मैं पीड़ा की आवृति को।
कुछ लिखने को बचा नहीं है, शेष नहीं कुछ अभिव्यक्ति को। "
.....................चेतन रामकिशन "देव"……..................
दिनांक-२५.०६.२०१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। २५
कुछ लिखने को बचा नहीं है, शेष नहीं कुछ अभिव्यक्ति को।
जिसने मन को भेद दिया हो, कैसे भूलूँ उस व्यक्ति को।
हर क्षण वो मेरे जीवन का, सौंप गये दुःख के चरणों में,
धुंआ, धुंआ है, चंहुओर ही, जुटा हुआ हूँ मैं मुक्ति को।
मेरा मन नीरस नीरस है, मेरा दिल भारी भारी है।
मेरे शब्दों को पीड़ा है, वक्तव्यों में लाचारी है।
मेरे आँगन की तुलसी भी, झुलस गयी है बारूदों से,
लगता है मेरे जीवन की, छलनी छलनी ये क्यारी है।
नहीं समझ आता मैं उनकी, कैसे बदलूं प्रवृत्ति को।
कुछ लिखने को बचा नहीं है, शेष नहीं कुछ अभिव्यक्ति को...
धवल रात होने का सपना, इन नयनों ने छोड़ दिया है।
जो दर्पण उनको दिखलाये, उसको हमने तोड़ दिया है।
"देव" चलो एकाकीपन की, बेला में पारंगत हो लें,
साथ भला वो क्या देंगे, जो मुझको दुख से जोड़ दिया है।
जड़वत होकर देखा करता, मैं पीड़ा की आवृति को।
कुछ लिखने को बचा नहीं है, शेष नहीं कुछ अभिव्यक्ति को। "
.....................चेतन रामकिशन "देव"……..................
दिनांक-२५.०६.२०१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। २५