Thursday 16 June 2011

♥♥पहले बता देते.....♥♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ ♥♥पहले बता देते.....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"बता देते मुझे पहले, तुम्हें जो छोड़ना ही था!
 मैं दिल पत्थर बना लेता, अगर ये तोड़ना ही था!

तुम्हारी आस में अक्सर, मैं जागा रात रात भर,
मैं तेरा ख्वाब ना रखता, अगर ये तोड़ना ही था!

तुम्हारे प्यार में मैंने, बिताया उम्र का हिस्सा,
तेरी आदत नहीं करता, अगर मुंह मोड़ना ही था!

तुम्हारे बिन तो सांसें भी, बड़ा ही दर्द करती हैं,
मैं सांसों को जला देता, तुम्हें जो छोड़ना ही था!

शिकायत है मुझे तुमसे, के तुम भी "देव" ना समझे,
मगर वादा नहीं करते, अगर वो तोड़ना ही था!"


"प्रेम, को आज इस अंदाज में लिखने का मन हुआ! प्रेम, एक ऐसी विषय वस्तु है, जो जिस शैली में भी चाहो लिखी जा सकती है, गीत में, ग़ज़ल में, कहानी में, दोहों में आदि - आइये शुद्ध प्रेम से मन को शुद्ध करें और प्रेम में किसी को पीड़ा देने से बचें-चेतन रामकिशन "देव"