♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रश्न...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नहीं आग्रह, नहीं निवेदन, न प्रस्ताव, नहीं वाचन है।
प्रेम पथिक हूँ, भाव मार्ग पर, सदा तुम्हारा अभिवादन है।
स्मृति और छवि तुम्हारी, रहे मेरे व्याकुल नयनों में,
तुम बिन जीवन सूखा पौधा, और तुम बिन एकाकीपन है।
हाँ अयोग्य-सापेक्ष तुम्हारे, पर तुम जैसे बन नहीं सकता ।
मैं काजल सा, श्वेत वर्ण बन, अम्बर से भी छन नही सकता।
किन्तु फिर भी प्रीत का अंकुर उदय हुआ मेरे मन में।
जरा बताओ प्रश्न हमारा, प्रेम है क्या वर्जित जीवन में....
तुमने मेरा पक्ष सुना न, मनोदशा को जान सके न।
मैं भी तुम जैसा मानव हूँ, बात कभी तुम मान सके न।
मेरे पांवों में भी कांटे, चुभकर देखो रक्त निकलता,
एकपक्षीय ऐनक से तुम, मेरा दुख पहचान सके न।
द्वार पे तुमने ताले जड़कर, प्रतिबन्ध किये दर्शन में।
जरा बताओ प्रश्न हमारा, प्रेम है क्या वर्जित जीवन में...
ज्यादा कुछ भी नहीं कहूँगा, केवल मैं इतना कहता हूँ।
जरा सोचना उस बिंदु को, जिस स्थल पे मैं रहता हूँ।
"देव" यदि तुम मेरी विरह के, भावों को अनुभूत करोगे,
तो तुम भी आश्चर्य करोगे, कैसे मैं जीवित रहता हूँ।
तुम बिन जग ऐसा लगता है, जैसे मैं हूँ निर्जन वन में।
जरा बताओ प्रश्न हमारा, प्रेम है क्या वर्जित जीवन में। "
..................चेतन रामकिशन "देव"…….................
दिनांक-११.०८.२०१५
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