Friday, 13 March 2015

♥♥♥धुंध...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥धुंध...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नया सवेरा आया लेकिन, धुंध नही हटती है मन की। 
उम्मीदें रखता हूँ फिर भी, क्यों टूटी है लय जीवन की। 
जिसको अपना समझा वो ही, मारके पत्थर घायल करता,
नहीं पता कब अंतिम होगी, पीड़ा मेरे अंतर्मन की। 

मुख पे झूठी हंसी दिखाकर, मैंने अश्रुपान किया है।
लोग यहाँ उपहास उड़ाते, मैंने पर सम्मान किया है। 
कोशिश की सबके घावों पर, मरहम सुख का लगा सकूँ मैं,
पर लोगों ने इसके बदले, मेरा तो अपमान किया है। 

पांव फट गये धूप में तपकर, नहीं चमक बाकी है तन की। 
नया सवेरा आया लेकिन, धुंध नही हटती है मन की ...

चलो लोग जैसा भी कर लें, उनकी नीति, उनका मन है। 
मेरे दिल में नहीं है नफरत, न हिंसा का स्पंदन है। 
"देव" हमे कुदरत ने भेजा, अंतिम साँस तलक जीने को,
इसीलिए हर ग़म सहकर के, काट लिया अपना जीवन है। 

रात की रानी नहीं महकती, सूख गयी तुलसी आँगन की। 
नया सवेरा आया लेकिन, धुंध नही हटती है मन की। "

.....................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक-१४.०३.२०१५


♥♥♥तुम बिन...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तुम बिन...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम बिन क्यों धरती सूनी है, तुम बिन क्यों अम्बर खाली है। 
तुम बिन क्यों आंसू बहते हैं, तुम बिन कैसी बेहाली है। 
तुमसे शायद मेरा नाता, है खुद के जीवन से बढ़कर,
तभी नहीं तुम बिन होली है, नहीं हमारी दीवाली है। 

अब समझा मैं प्यार में कोई, यहाँ निहित जब हो जाता है। 
तो उसके जीवन का पल पल, एहसासों में खो जाता है। 
यदि मिलन के क्षण आयें तो, वो खिल जाता है फूलों सा,
मगर विरह के एहसासों में, एक दम से मुरझा जाता है। 

तभी मैं सोचूं क्यों बिन तेरे, सूख गयी हर एक डाली है, 
तुम बिन क्यों धरती सूनी है, तुम बिन क्यों अम्बर खाली है ...

नहीं पता तुम कब आओगे, हर दिन जीवन कम होता है। 
बिना तुम्हारे हंसना भूला, इतना ज्यादा ग़म होता है। 
"देव" न जाने तुम क्यों आखिर, नहीं समझते मेरी बेबसी,
मेरी पीड़ा देखके जबकि, आसमान भी नम होता है। 

बिना तुम्हारे धवल चांदनी, मेरी खातिर तो काली है। 
तुम बिन क्यों धरती सूनी है, तुम बिन क्यों अम्बर खाली है। "

......................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक-१३.०३.२०१५