♥♥♥♥♥♥♥♥ ♥♥मेरी मातृभूमि(मेरी माँ) ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"मेरे भारत की भूमि है, मुझे प्राणों से प्यारी है!
यही पितृत्व सुख देती, यही जननी हमारी है!
यहाँ सत्ता के भक्षक, देश को फिर बेचना चाहें,
इन्ही लोगों ने भारत माँ की, ये इज्जत उतारी है!
चलो अब चुप्पियाँ तोड़ो, हमे अब युद्ध करना है!
वतन के शत्रुओं से, देश को स्वतंत्र करना है!
माँ जननी के भी अश्रु देखकर, जो रो नहीं सकता!
निरा पाशाच है, इन्सान वो तो हो नहीं सकता....
यहाँ जो सत्य कहता है, उसे अवसान करते हैं!
यहाँ सत्ता के भक्षक, देश को नीलाम करते हैं!
यहाँ निर्धन के तन पे, एक भी कपड़ा नहीं मिलता,
वो सब कुछ जानते हैं पर, कुटिल मुस्कान भरते हैं!
चलो संकल्प लो अब, जीत का ये मंत्र पढना है!
वतन के शत्रुओं से, देश को स्वतंत्र करना है!
जो अपने मन में, संघर्षों के अंकुर बो नहीं सकता!
निरा पाशाच है, इन्सान वो तो हो नहीं सकता....
नहीं जागे यदि अब भी, कोई अस्तित्व ना होगा!
ना कोई नाम जानेगा, कोई व्यक्तित्व ना होगा!
करेंगे"देव" बनकर राज, ये सत्ता के भक्षक ही,
यहाँ निर्धन जनों का, कोई भी प्रभुत्व ना होगा!
चलो अब मांझ लो खुद को, हमे अब शस्त्र बनना है!
वतन के शत्रुओं से, देश को स्वतंत्र करना है!http://translate.google.com/#submit
जो अपने मन से दासी सोच को, भी धो नहीं सकता!
निरा पाशाच है, इन्सान वो तो हो नहीं सकता!"
"मातृभूमि के लिए सोचना, प्रेम करना, माँ पे हमारा उपकार नहीं है, वरन दायित्व है! तो आइये "माँ भूमि" से स्नेह करें, और इन भक्षकों से देश को मुक्त करायें!-चेतन रामकिशन"देव"
"मेरे भारत की भूमि है, मुझे प्राणों से प्यारी है!
यही पितृत्व सुख देती, यही जननी हमारी है!
यहाँ सत्ता के भक्षक, देश को फिर बेचना चाहें,
इन्ही लोगों ने भारत माँ की, ये इज्जत उतारी है!
चलो अब चुप्पियाँ तोड़ो, हमे अब युद्ध करना है!
वतन के शत्रुओं से, देश को स्वतंत्र करना है!
माँ जननी के भी अश्रु देखकर, जो रो नहीं सकता!
निरा पाशाच है, इन्सान वो तो हो नहीं सकता....
यहाँ जो सत्य कहता है, उसे अवसान करते हैं!
यहाँ सत्ता के भक्षक, देश को नीलाम करते हैं!
यहाँ निर्धन के तन पे, एक भी कपड़ा नहीं मिलता,
वो सब कुछ जानते हैं पर, कुटिल मुस्कान भरते हैं!
चलो संकल्प लो अब, जीत का ये मंत्र पढना है!
वतन के शत्रुओं से, देश को स्वतंत्र करना है!
जो अपने मन में, संघर्षों के अंकुर बो नहीं सकता!
निरा पाशाच है, इन्सान वो तो हो नहीं सकता....
नहीं जागे यदि अब भी, कोई अस्तित्व ना होगा!
ना कोई नाम जानेगा, कोई व्यक्तित्व ना होगा!
करेंगे"देव" बनकर राज, ये सत्ता के भक्षक ही,
यहाँ निर्धन जनों का, कोई भी प्रभुत्व ना होगा!
चलो अब मांझ लो खुद को, हमे अब शस्त्र बनना है!
वतन के शत्रुओं से, देश को स्वतंत्र करना है!http://translate.google.com/#submit
जो अपने मन से दासी सोच को, भी धो नहीं सकता!
निरा पाशाच है, इन्सान वो तो हो नहीं सकता!"
"मातृभूमि के लिए सोचना, प्रेम करना, माँ पे हमारा उपकार नहीं है, वरन दायित्व है! तो आइये "माँ भूमि" से स्नेह करें, और इन भक्षकों से देश को मुक्त करायें!-चेतन रामकिशन"देव"