♥♥♥♥♥♥♥♥अँधा कानून..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कातिल तो क़त्ल करके, रिहा होने लगा है!
मजलूम तो हर रोज, तबाह होने लगा है!
कानून ने पट्टी, यहाँ आँखों पे बांध ली,
अब झूठ यहाँ, सच का गवाह होने लगा है!
सांसों को अपनी बेच के, ले आया दवाई,
लफ्जों के दिल में दर्द, अथाह होने लगा है!
बचपन भी रहा दर्द में, और दुख में जवानी,
अब देखो मेरा, गम से निकाह होने लगा है!
ए "देव" मेरे मुल्क का, कैसा निजाम है,
मैं सच को सच लिखूं तो, गुनाह होने लगा है!"
................चेतन रामकिशन "देव"...............
( २३.०३.२०१३)