♥♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द की सीमा...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सहें हम दर्द ये कितना, कोई सीमा तो तय कर दो।
दुआ देकर मेरा डूबा हुआ, सूरज उदय कर दो।
मेरी चौखट पे भी दस्तक, ख़ुशी की अब जरुरी है,
बहुत कोशिश में हूँ कुदरत, चलो मेरी विजय कर दो।
नहीं मैं पूर्ण हूँ मेरा, अधूरापन तुम्ही हर दो।
मेरी मासूमियत से भूल हो, तो माफ़ तुम कर दो।
मेरी किस्मत पे पाबन्दी की, बेड़ी तोड़कर के तुम,
मेरी आँखों की सूनी राह पे, अब तुम दमक कर दो।
मुझे तुम धैर्य देकर के, मेरे मन को अभय कर दो।
सहें हम दर्द ये कितना, कोई सीमा तो तय कर दो...
हमारी सांस भारी है, हमारी आँख में जल है।
मेरा आकाश काला है, मेरी सुखी हुयी थल है।
मैं इन्सां हूँ बहुत कोशिश भी करके जीत न पाया,
सुनो कुदरत, क्या मेरी उलझनों का अब कोई हल है।
मेरी सांसो की बिखरी पंक्तियों में अब तो लय कर दो।
सहें हम दर्द ये कितना, कोई सीमा तो तय कर दो...
भरोसा है तुम्ही पर, तो ही तुमसे बात करता हूँ।
उम्मीदें लेके आये कल, इसी में रात करता हूँ।
ए कुदरत "देव" की सुनना, सुनो हर एक परेशां की,
हवाले मैं तुम्हे दिल के, सभी जज्बात करता हूँ।
बुरा ये वक़्त अब जाये, जरा अच्छा समय कर दो।
सहें हम दर्द ये कितना, कोई सीमा तो तय कर दो। "
...............चेतन रामकिशन "देव"…................
दिनांक--०४.०१.१५