Saturday, 4 October 2014

♥कांच का घर...♥

♥♥♥♥♥कांच का घर...♥♥♥♥♥
न ही साहिल है, न किनारा है। 
दर्द में दिल भी बेसहारा है। 

साँस लेने को भी हवा न मिली,
फिर भी इस वक़्त को गुजारा है!

जीतने को बहुत ही दिल जीते,
मेरा दिल खुद से आज हारा है। 

रात भर करवटें बदलता रहा,
हाल, बेहाल अब हमारा है। 

रौशनी पास में नहीं आई,
सामने यूँ तो चाँद, तारा है। 

दोस्ती पत्थरों से हो ही गयी,
कांच का जबके घर हमारा है!

"देव" जिनको समझ नहीं ग़म की,
उनसे मिलना भी न गवारा है।"

.......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक- ०५.१०.२०१४