Tuesday, 23 August 2011

♥कलम कैसे उठाये वो ...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥कलम कैसे उठाये वो ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"कलम कैसे उठाये वो, गरीबी का जो मारा है!
 वो अपने घर के चूल्हे का, सुलगता सा अंगारा है!
वो बेबस है, बड़ा मजबूर, लेकिन कह नहीं सकता,
वो कैसे चाँद को छूले , जो खुद टूटा सितारा है!

बिना उसकी कमाई से, तो घर में भूख रहती है!
नहीं मिलती दवा माँ को, बहन खामोश रहती है!

वो कैसे काम को त्यागे, वही घर का सहारा है!
कलम कैसे उठाये वो, गरीबी का जो मारा है.....

कभी धोता है वो बर्तन, कभी रिक्शा चलाता है!
कभी अख़बार भी बेचे, कभी ठेला लगाता है!
कभी उसकी नजर पड़ती है, जब स्कूली बच्चों पर,
वो जाकर एक कोने में, बहुत आंसू बहाता है!

वो अपने दिल की आवाजों को लेकिन सुन नहीं सकता!
गरीबी में वो महंगे स्वप्न अपने बुन नहीं सकता!

बड़ी मुश्किल से कर पाता, वो तो सबका गुजारा है!
कलम कैसे उठाये वो, गरीबी का जो मारा है.....

वतन की कोई भी सरकार उनका दर्द ना जाने!
मिटे इनकी गरीबी जो, नहीं वो बात है ठाने!
बहुत देते हैं मंचो से तो भाषण देश के नेता,
हकीक़त में मगर कोई, गरीबों की नहीं माने!

सिसकता है, बिलखता है, कोई उसकी नहीं सुनता!
कोई उसके पथों के शूल भी आकर नहीं चुनता!

हर एक सरकार उद्घोषित करे बस झूठा नारा है!
कलम कैसे उठाये वो, गरीबी का जो मारा है!"

"बाल श्रम, सरकार केवल इसे रोकने के लिए एक कानून बना चुकी है, कानून से आप एक बालक को काम करने से वंचित कर देते हो, किन्तु क्या कभी उसके और उसके परिवार के सदस्यों की भूख मिटाने के लिए भी सरकार कुछ करती हैं, कुछ भी नहीं-चेतन रामकिशन "देव"