Wednesday 13 August 2014

♥प्रेम सम्पदा..♥

♥♥♥♥प्रेम सम्पदा..♥♥♥♥♥♥
अनुभूति विस्थापित कर दूँ!
प्रेम को कैसे बाधित कर दूँ!
जो वर्षों से वसा है मन में,
क्यों उसको निष्काषित कर दूँ!

क्यों तोडूं विश्वास किसी का,
क्यों भूलूँ एहसास किसी का,
क्यों मैं क्षण में खंडहर कर दूँ,
खिला हुआ आवास किसी का!

क्यों मिथ्या की संरचना को,
शब्दों से सत्यापित कर दूँ!
जो वर्षों से वसा है मन में,
क्यों उसको निष्काषित कर दूँ...

उसे बदलना है वो बदले,
नहीं बदलना मुझको आता!
बस उससे ही मेल है मन का ,
नहीं दूसरा मुझको भाता!
"देव" मेरे नयनों में अब तक,
बस उसका ही चित्र वसा है,
धवल आत्मिक प्रेम सम्पदा,
नहीं शरीरों का बस नाता!

प्रेम भावना के पत्रों को,
क्यों कर मैं सम्पादित कर दूँ!
जो वर्षों से वसा है मन में,
क्यों उसको निष्काषित कर दूँ! "

.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-१३ .०८. २०१४