Wednesday 3 December 2014

♥♥♥घायल... ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥घायल... ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दिल पे पत्थर मार मार के, मुझको घायल कर देते हैं। 
ये अपने हैं या फिर दुश्मन, दुख से आँचल भर देते हैं। 
जो अक्सर दावा करते हैं, मैं उनको हूँ खून से बढ़कर,
वही लोग क्यों मेरी रूह से, इस तरह छल कर देते हैं। 

प्रेम नाम की माला जपकर जो दुनिया को दिखलाते हैं। 
वही लोग क्यों निर्ममता से, प्रेम की हत्या कर जाते हैं। 
फूलों जैसे स्वप्न दिखाकर, शहद सी बातें करने वाले,
एक पल भर में ही प्यार वफ़ा के, संबंधों को झुठलाते हैं। 

एक क्षण में ही शांत नदी में, वो कोलाहल कर देते हैं। 
दिल पे पत्थर मार मार के, मुझको घायल कर देते हैं। 

मेरी आह का, मेरी चीख का, उनको असर नहीं होता है। 
क्या मालूम हमारे तन में, उनसा रुधिर नहीं होता है। 
"देव " हमारी हथेलियों में, क्या कोई ऐसी शेष है रेखा,
जिसके पथ पर पीड़ा, दुश्मन, दुख और ज़हर नहीं होता है।  

वो मिथ्या से सुरा तलक को भी, गंगाजल कर देते हैं। 
दिल पे पत्थर मार मार के, मुझको घायल कर देते हैं। "

....................चेतन रामकिशन "देव"……............. 
दिनांक--०४.१२.२०१४