♥♥♥♥तुमने समझा न...♥♥♥♥
तुमने समझा न दर्द को मेरे,
मैंने भी मिन्नतों को छोड़ दिया!
एक था प्यार से भरा जो दिल,
अपने हाथों से खुद ही तोड़ दिया!
तुमको अश्क़ों की धार दिखलाई!
अपनी बेचैनी तुमको बतलाई!
तुमने नफरत से ही मगर देखा,
प्यार की दुनिया तुमने ठुकराई!
जिस कलाई को थामते थे कभी,
आज उसको ही यूँ मरोड़ दिया...
वक़्त का आईना दिखाकर के!
जा रहे तुम नज़र चुराकर के!
तुमको खुशियां हजार मिलती हों,
क्या पता मेरा दिल जलाकर के!
दर्द में मैं बिलख रहा था मगर,
तुमने मरहम का जार फोड़ दिया!
तुमने समझा न दर्द को मेरे,
मैंने भी मिन्नतों को छोड़ दिया...
अब चलो फैसला लिया है ये,
तेरे दर पर न लौट आएंगे!
"देव" पत्थर का, कर लिया दिल को,
रात दिन कितनी चोट खाएंगे!
प्यार की जो नदी उमड़ती थी,
उसको सूखे के, साथ जोड़ दिया!
तुमने समझा न दर्द को मेरे,
मैंने भी मिन्नतों को छोड़ दिया! "
......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-०८.०९.२०१४