Sunday 4 January 2015

♥♥बदलाव...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥बदलाव...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बदलते दौर का रिश्ता है ये, बदलाव मांगेगा। 
कभी आंसू कभी ये खून का, सैलाब मांगेगा। 
मेरे चलने से ही सूरत पे मेरी, है चमक देखो,
अगर मैं थम गया तो, वक़्त ये ठहराव मांगेगा।

नये इस दौर में,  चाहत, वफ़ा बेमोल लगती है। 
तमाशा देखते हैं सब, जो मेरी आँख दुखती है। 
किसे से दर्द बांटो तो, मिले उपहास का तोहफा,
यहाँ सब तापते हैं, जो मेरे घर आग लगती है। 

दवा मिलती नहीं, मरहम भले हर घाव मांगेगा। 
बदलते दौर का रिश्ता है ये, बदलाव मांगेगा... 

यहाँ पैसों की बातें हों, दिलों को कौन चुनता है। 
यहाँ सब हो गए बहरे, मेरा गम कौन सुनता है। 
कहुँ क्या "देव" कुछ कहने को, वाकी है नहीं अब कुछ,
जिसे अपना कहा फांसी का फंदा, वो ही बुनता है। 

जिसे भी देखो वो खुद के लिए, रुआब मांगेगा। 
बदलते दौर का रिश्ता है ये, बदलाव मांगेगा। "

.............चेतन रामकिशन "देव"…............
दिनांक--०४.०१.१५