Friday, 28 September 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मानवता का दीप..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अपने मन से मानवता का, दीप कभी न बुझने देना!
तुम शोषण के आगे अपना, शीश कभी न झुकने देना!

अपने शब्दों में मर्यादा और नैतिकता का पालन कर,
अपने शब्दों से श्रोता का, ह्रदय कभी न दुखने देना!

युद्द में देखो विजय-पराजय, किसी के हिस्से तो आनी है,
बिना लड़े ही अपने मन का, जोश कभी न चुकने देना!

मिथ्या के धुंधले मेघा में, सच का सूरज छुपेगा कब तक,
इसीलिए अपने हाथों से, सत्य कभी न बिकने देना!

जिसको पढ़कर देश में दंगा, हिंसा, द्वेष के अंकुर फूटें,
"देव" तुम अपने कलम को ऐसा, काव्य कभी न लिखने देना!"


रचनाकार-चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२९.०९.२०१२





♥♥♥♥♥♥♥♥बदलाव की चकाचोंध..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
वो क्या जानें मेरे प्यार को, मेरी चाह को, मेरी आह को,
जिन लोगों ने मेरे दिल का शीशा चकनाचूर कर दिया!

उन लोगों को बस मतलब है, केवल रूपये और पैसे से,
जिसने देख गरीबी मेरी, खुद को मुझसे दूर कर लिया!

जो अक्सर दावे करता था, मुझ पर जान लुटाने के भी,
आज उसी इंसान ने मुझको, मरने पर मजबूर कर दिया!

आज भला वो किन हाथों से, मेरे ज़ख्म की शिफ़ा करेंगे,
गुजरे वक़्त में जिन लोगों ने, ज़ख्म मेरा नासूर कर दिया!

"देव" देखिए लोग आज के, आँखों पर पट्टी बांधे हैं,
गुंडों को भी नेता कहकर, इन सबने मशहूर कर दिया!"

................चेतन रामकिशन "देव"........................