♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मानवता का दीप..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अपने मन से मानवता का, दीप कभी न बुझने देना!
तुम शोषण के आगे अपना, शीश कभी न झुकने देना!
अपने शब्दों में मर्यादा और नैतिकता का पालन कर,
अपने शब्दों से श्रोता का, ह्रदय कभी न दुखने देना!
युद्द में देखो विजय-पराजय, किसी के हिस्से तो आनी है,
बिना लड़े ही अपने मन का, जोश कभी न चुकने देना!
मिथ्या के धुंधले मेघा में, सच का सूरज छुपेगा कब तक,
इसीलिए अपने हाथों से, सत्य कभी न बिकने देना!
जिसको पढ़कर देश में दंगा, हिंसा, द्वेष के अंकुर फूटें,
"देव" तुम अपने कलम को ऐसा, काव्य कभी न लिखने देना!"
रचनाकार-चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२९.०९.२०१२
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