Sunday 12 October 2014

♥♥बरताब....♥♥

 ♥♥♥♥♥♥बरताब....♥♥♥♥♥♥♥
अपने बरताब याद अाने लगे। 
दर्द में हम जो तिलमिलाने लगे। 

हमको आंधी पे तब यकीन हुआ,
घर को तूफान जब हिलाने लगे। 

अपनी कमियां भी हमको दिखने लगीं,
जब नज़र खुद से हम मिलाने लगे। 

थी तपिश, आह और तड़प, चीखें,
लोग जब मेरा दिल जलाने लगे। 

मन के भीतर का न मरा रावण,
तीर दुनिया पे हम चलाने लगे!

जो गलत बात थी वो छोड़ी नहीं,
मौत को हम करीब लाने लगे। 

"देव" रखा रहा गुरुर मेरा,
लोग शव मेरा जब जलाने लगे। "

....चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक- १२.१०.२०१४