Monday, 11 April 2011

**दिल की दरारें ***


**********************दिल की दरारें ********************
"मेरे दिल में दरारें हैं, मेरी आँखों में पानी है!
 ग़मों की धूप में झुलसी, हमारी जिंदगानी है!

   सियासत दार के होठों से मीठा रस छलकता है,
   दिलों  में झांक कर देखो, मगर नियत पुरानी है

बड़े बेनूर हैं, लाचार हैं, मजबूर भी हैं वो,
उन्ही का बचपना जलता, जली उनकी जवानी है!
  
     उन्हें पिछड़ा बताकर के, दलित, कमजोर कहते हैं,
   नहीं पर दूसरा उनसा, मेरा इतिहास सानी है!

जरा मुझको बताओ "देव" हम कमजोर हैं कैसे,
रगो के खून से लिखी, हमारी भी कहानी  है!"



"गरीबी और जातिवाद , व्यक्ति को आर्थिक रूप से तो कमजोर बना सकती है, मगर उसकी मानसिकता, बुद्धिमानी और कर्मठता को नहीं! तो आइये अपनी सोच का परिवर्तन करें-चेतन रामकिशन (देव)"