Saturday, 19 November 2011

♥दहेज़ की अगन♥


"♥♥♥♥♥♥♥♥दहेज़ की अगन♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बड़े अरमान लेकर के पति के घर वो आई थी!
नए माहौल में उसने नई दुनिया वसाई थी!
वो जिसको मांग में सिंदूर भरकर पूजती रहती,
उसी लोभी ने उसकी देह की होली जलाई थी!

उन्हें करके भी ऐसे पाप, न अवसाद होता है!
तमाशा देखते हैं वो, कोई बरबाद होता है!

पड़ी है राख- चिंगारी जहाँ मखमल बिछाई थी!
बड़े अरमान लेकर के पति के घर वो आई थी......

पिता ने कर्ज लेकर के ब्याह उसका रचाया था!
उधर से मांग जो आई वही सामान लाया था!
बड़ी आशाओं से उसने दिया था हाथ बेटी का,
नयन में नीर भरके बेटी को डोली बिठाया था!

कभी सोचा भी ना था बेटी का ये हाल कर देंगे!
वो उसकी चांदनी को इस तरह से लाल कर देंगे!

हुई दुनिया से वो रुखसत, करी जिसकी विदाई थी!
बड़े अरमान लेकर के पति के घर वो आई थी......

हजारों नारियों के साथ ऐसा रोज करते हैं!
कभी प्रहार करते हैं, कभी आरोप जड़ते हैं!
यहाँ लगती हैं मिथ्या "देव" नारी मुक्ति की बातें,
यहाँ नारी के रखवाले ही उनसे युद्ध लड़ते हैं!

पति की आयु-वृद्धि को, सदा मंदिर भी जाती थी!
चरण छूती थी भगवन के, वहां मस्तक झुकाती थी!

उसी ने मौत दी, जिसके लिए बाती जलाई थी!
बड़े अरमान लेकर के पति के घर वो आई थी!"


" दहेज़ के लिए नारी की देह को जलाना, उत्पीड़न करना, आज भी व्यापक स्तर पर है! नारी भी मानव है, पीड़ा की अनुभूति उसे भी होती है! आखिर हम प्रेम और अपनेपन की बजाये क्यूँ विवाह जैसे बंधन में सौदेबाजी करते हैं और मनचाहा ना मिलने पर ऐसी अमानवीय हरकत करते हैं! तो आइये इस दशा को सँभालने में अपने स्तर से सहयोग करें!-
   दिनांक--२०-११-2011                                        चेतन रामकिशन "देव"