Monday, 3 June 2013

♥♥♥गम की जडें..♥♥♥

♥♥♥गम की जडें..♥♥♥
दुख की भरी दुपहरी है पर,
जड़ें गमों की काट रहा हूँ!
तन्हाई में साथ रहे जो,
कुछ ऐसे पल छांट रहा हूँ!
इस दुनिया ने भले ही मुझको,
कभी प्यार से नहीं पुकारा,
मगर मैं फिर भी इस दुनिया को,
प्यार के लम्हें बाँट रहा हूँ!

नहीं पता के सच से मुझको,
आखिर क्या हासिल होता है!
वो क्या समझे किसी के आंसू,
जिसका पत्थर दिल होता है!
और ये देखो, इस दुनिया के,
लोगों का है अजब नजरिया,
उसी को अच्छा कहते हैं सब,
जो देखो कातिल होता है!

कभी कभी भलमनसाहत पर,
मैं खुद ही डांट रहा हूँ!
दुख की भरी दुपहरी है पर,
जड़ें गमों की काट रहा हूँ...

मुझको खुद से गिला नहीं है,
नजरें खुद से मिला रहा हूँ!
अपनी आँखों के अश्कों से,
बंजर में गुल खिला रहा हूँ!
"देव" यकीं है एक दिन मुझको,
पत्थर जैसे दिल पिघलेंगे,
इसीलिए मैं उम्मीदों के,
दीपक दिल में जला रहा हूँ!

बुरे वक़्त में अपने दिल को,
सूखी शबनम बाँट रहा हूँ!
दुख की भरी दुपहरी है पर,
जड़ें गमों की काट रहा हूँ!"

...चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-०४.०६.२०१३

♥♥♥सूखा बादल...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥सूखा बादल...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दर्द बाँटने निकला हूँ मैं, मगर किसी ने लिया नहीं है!
मेरी आंख का बहता आंसू, कभी किसी ने पिया नहीं है!
यूँ तो मुझको बहुत मिले हैं, अपनायत दिखलाने वाले,
मगर किसी ने मेरे दर्द का, घाव जरा भी सिया नहीं है!

आसमान में चाँद देखकर, भले मेरे दिल मुस्काता है!
लेकिन झूठी हंसी का आलम, पलकों पे आंसू लाता है!

कभी किसी ने मेरे दुःख को, यहाँ भरोसा दिया नहीं है!
दर्द बाँटने निकला हूँ मैं, मगर किसी ने लिया नहीं है...

उसने ही मुंह मोड़ लिया है, जिससे मैंने आस रखी है!
वो निकला बस सूखा बादल, जिससे मैंने प्यास रखी है!
"देव" जहाँ में जिसको मैंने, हरियाली का वन समझा था,
उस इन्सां ने मेरे पथ में, गम की सूखी घास रखी है!

दर्द भरी इस तन्हाई का, वक़्त न जाने कब तय होगा!
नहीं पता के इस जीवन से, दुख का जाने कब क्षय होगा!

कभी किसी ने घने तिमिर में, यहाँ उजाला किया नही है!
दर्द बाँटने निकला हूँ मैं, मगर किसी ने लिया नहीं है!"

...................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-०३.०६.२०१३