Sunday 11 December 2011

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मन में न अभिमान के अंकुर उगाइए!
अपने से छोटों को भी गले से लगाइए!
जाने के बाद भी जो करे याद ये जहाँ,
तुम नम्रता के तेल से दीपक जलाइए!"
---"शुभ-दिन"----चेतन रामकिशन "देव"---

♥एक इन्सान तुम बनो ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥एक इन्सान तुम बनो ♥♥♥♥♥♥♥
हिंदू न बनो तुम , न ही मुसलमान तुम बनो |
बनना ही है कुछ , तो नेक इंसान तुम बनो |
सिर्फ लड़ने - झगड़ने से जीवन नहीं साकार |
भरदो लबों में खुशी सबकी मुस्कान तुम बनो |

हिंसा में सिर्फ दर्द है , न देती ये दिल को सुकून |
रूह को करती छलनी , उतार देती आँखों में खून |

बस प्रेम और सदभावना की पहचान तुम बनो |
हिंदू न बनो तुम और न ही मुसलमान तुम बनो |

आपस में बैर करने से, हमें कहाँ कुछ है मिलेगा |
नफरत भरेगी दिलो में , प्यार तो बढ़ नहीं सकेगा |
आने वाली नस्लों को, हम ये तोहफा क्यूँ दे जाएँ |
आओ मिलकर आज ही सुन्दर एक जहां बनाये |

हिंसा आँखों में एक - दूजे के , भर देता बस लहू |
जब प्रेम ही है जहां में तो इसकी पहचान तुम बनो |

मानव की सभ्यता का सम्मान तुम बनो |
हिन्दू ना बनो तुम और ना मुसलमान तुम बनो!"

"तो आइये नेक इन्सान बने, इंसानियत का धर्म हर एक धर्म से ऊँचा है! एक दूजे को
स्नेह और सद्भाव के साथ सम्मान देंगे तो, मनुज और मनुज के बीच मजहब की दीवार कड़ी होगी!

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक- ११.१२.२०११                                 साभार- मीनाक्षी जी!