♥♥♥♥♥♥♥शब्दों के फूल...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
शब्द मेरे फूल बनकर, एक दिन महका करेंगे!
बनके पंछी आसमां में, रात दिन चहका करेंगे!
वो सुबह की धूप मलकर, अपनी सूरत को सजाकर,
गेंहू की बाली की तरह, रात दिन लहका करेंगे!
अपने शब्दों में भरी है, मैंने है ये आवाज़ मन की!
शब्द मेरे जानते हैं, वेदना देखो दुखन की!
दर्द में गम को हराकर, हर्ष में बहका करेंगे!
शब्द मेरे फूल बनकर, एक दिन महका करेंगे
जो मेरे दिल को दुखाकर, खुद हंसी में रह रहे हैं!
शब्द मेरे फिर भी देखो, उनको अपना कह रहे हैं!
"देव" मैं शब्दों की अपने, और क्या बातें बताऊँ,
देखो हंसकर शब्द मेरे, मेरे गम को सह रहे हैं!
अपने शब्दों से जहाँ में, प्रेम का दीपक जलाऊं!
नफरतों को, साजिशों को, रंजिशों को मैं भुलाऊं!
अपने हक की जंग में ये, आग बन दहका करेंगे!
शब्द मेरे फूल बनकर, एक दिन महका करेंगे!"
.............…चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-१७.१०.२०१३
शब्द मेरे फूल बनकर, एक दिन महका करेंगे!
बनके पंछी आसमां में, रात दिन चहका करेंगे!
वो सुबह की धूप मलकर, अपनी सूरत को सजाकर,
गेंहू की बाली की तरह, रात दिन लहका करेंगे!
अपने शब्दों में भरी है, मैंने है ये आवाज़ मन की!
शब्द मेरे जानते हैं, वेदना देखो दुखन की!
दर्द में गम को हराकर, हर्ष में बहका करेंगे!
शब्द मेरे फूल बनकर, एक दिन महका करेंगे
जो मेरे दिल को दुखाकर, खुद हंसी में रह रहे हैं!
शब्द मेरे फिर भी देखो, उनको अपना कह रहे हैं!
"देव" मैं शब्दों की अपने, और क्या बातें बताऊँ,
देखो हंसकर शब्द मेरे, मेरे गम को सह रहे हैं!
अपने शब्दों से जहाँ में, प्रेम का दीपक जलाऊं!
नफरतों को, साजिशों को, रंजिशों को मैं भुलाऊं!
अपने हक की जंग में ये, आग बन दहका करेंगे!
शब्द मेरे फूल बनकर, एक दिन महका करेंगे!"
.............…चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-१७.१०.२०१३