Wednesday 16 October 2013

♥♥शब्दों के फूल...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥शब्दों के फूल...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
शब्द मेरे फूल बनकर, एक दिन महका करेंगे!
बनके पंछी आसमां में, रात दिन चहका करेंगे!
वो सुबह की धूप मलकर, अपनी सूरत को सजाकर,
गेंहू की बाली की तरह, रात दिन लहका करेंगे!

अपने शब्दों में भरी है, मैंने है ये आवाज़ मन की!
शब्द मेरे जानते हैं, वेदना देखो दुखन की!

दर्द में गम को हराकर, हर्ष में बहका करेंगे!
शब्द मेरे फूल बनकर, एक दिन महका करेंगे

जो मेरे दिल को दुखाकर, खुद हंसी में रह रहे हैं!
शब्द मेरे फिर भी देखो, उनको अपना कह रहे हैं!
"देव" मैं शब्दों की अपने, और क्या बातें बताऊँ,
देखो हंसकर शब्द मेरे, मेरे गम को सह रहे हैं!

अपने शब्दों से जहाँ में, प्रेम का दीपक जलाऊं!
नफरतों को, साजिशों को, रंजिशों को मैं भुलाऊं!

अपने हक की जंग में ये, आग बन दहका करेंगे!
शब्द मेरे फूल बनकर, एक दिन महका करेंगे!"

.............…चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-१७.१०.२०१३


♥♥मेरे मन की कोशिकायें♥♥

♥♥♥♥♥♥मेरे मन की कोशिकायें♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बिन तुम्हारे शांत सी हैं, मेरे मन की कोशिकायें!
न दवाओं का असर है, न ही लगती हैं दुआयें!
तुम नहीं तो किसको देखें, तुम नहीं तो किसको बोलें,
बिन तुम्हारे हाल दिल का, हम भला किसको सुनायें!

बिन तेरे न चेतना है, बस उदासी ही वसी है!
मन की आशा टूटती हैं, न हंसी है, न खुशी है!
"देव" अब तो बिन तुम्हारे, सांस भी भारी हुई है!
जिंदगी पीड़ा के हाथों, लगता है हारी हुयी है!

कौनसी युक्ति है जिससे, हम तुम्हें दिल से भुलायें!
बिन तुम्हारे शांत सी हैं, मेरे मन की कोशिकायें!

प्रेम की विरह की पीड़ा, कंठ से मैं क्या सुनाऊं!
बस रहूँ मैं खोया खोया, और मैं आंसू बहाऊं!
हर घड़ी तुमसे मिलन की, बस यहाँ उम्मीद रखूं,
बिन तुम्हारे जिंदगी मैं, किस तरह तन्हा बिताऊं!

कौन देखे टूटे दिल को, किसको हम जाकर दिखायें!
बिन तुम्हारे शांत सी हैं, मेरे मन की कोशिकायें!"

..............…चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-१६.१०.२०१३

♥♥टूटते तारों से...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥टूटते तारों से...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
टूटते तारों से मन्नत, मांगकर भी क्या मिला है!
आज भी तो जिंदगी में, दर्द का एक सिलसिला है!

अपने हाथों से तराशा, मैंने अपनी देह को,
तब कहीं मेरा बदन ये, आदमी जैसा ढ़ला है!

दर्द की फरियाद देखो, कोई सुनता ही नहीं, 
इसीलिए तो अब जहाँ में, चुप ही रहने में भला है!

जिंदगी में जब से मेरी, वक़्त ये आया बुरा,
तब से देखो चांदनी में भी, हमारा घर जला है!

तब से मेरा रंग खिलकर, चाँद सा उजला हुआ,
जब से मैंने आंसुओं को, अपने चेहरे पे मला है!

आज फिर डूबी हैं आँखे, आंसुओं की बाढ़ से,
ऐसा लगता है ग़मों की, बर्फ का पर्वत गला है!

"देव" फिर भी जिंदगी से, न गिला मुझको कोई,
रात दिन किस्मत ने बेशक, मेरी खुशियों को छला है!"  

............…चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-१६.१०.२०१३

♥♥वेदना की आंच ..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥वेदना की आंच ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गीत का सम्बन्ध मेरे, मन के गहरे भाव से है!
आपकी स्मृतियों का, नेह मन के घाव से है!
वेदना की आंच पे मैं तप के, कुंदन हो गया हूँ,
केंद्रबिंदु अब विषय का, बस इसी बदलाव से है!

कैसे मन से वेदना की धार को, अवमुक्त कर दूँ!
कैसे मैं संवेदना को, अपने मन से सुप्त कर दूँ!
एक क्षण की छूट से भी, बाढ़ का खतरा बना है,
कैसे दुख की बाढ़ से मैं, नव किरण को लुप्त कर दूँ!

मन की मखमल सी सतह का, ध्यान करता जा रहा हूँ!
इसीलिए मैं अपने दुख का, पान करता जा रहा हूँ!

वेदना को ये समर्पण, मानसिक सद्भाव से है!
गीत का सम्बन्ध मेरे, मन के गहरे भाव से है…

वेग दुख का नापने को, युक्तियाँ कुछ जान ली हैं!
कुछ चनौती जिंदगी में, फिर से मैंने ठान ली हैं!
"देव" मैंने वेदना के कड़वे रस का पान करके,
देखकर दर्पण में खुद को, अपनी कमियां जान ली हैं!

वेदना के भ्रूण से मैं, सुख की रचना कर रहा हूँ!
लिखके मैं आवाज मन की, काव्य रचना कर रहा हूँ!

मेरा चिंतन भी प्रभावित, प्रेम के बिखराव से है!
गीत का सम्बन्ध मेरे, मन के गहरे भाव से है!"

.............…चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-१६.१०.२०१३