Tuesday 14 January 2014

♥♥...बड़ी चुप चुप ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥...बड़ी चुप चुप ♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दिन भी खामोश था, अब रात बड़ी चुप चुप है!
आईने से भी मुलाकात बड़ी चुप चुप है!

मेरे कानों में जो घुंघरू की तरह बजती थी,
आज वो देखिये बरसात बड़ी चुप चुप है!

आदमी माने नहीं लाख भी समझाने पर,
तब से इंसानियत की जात बड़ी चुप चुप है!

जीत जाता तो मेरा जश्न मनाती दुनिया,
हो गया तनहा मैं ये, मात बड़ी चुप चुप है!

बिन दहेजों के थमी रहती यहाँ पर डोली,
घर में मुफ़लिस के, ये बारात बड़ी चुप चुप है!

नहीं मालूम हमें लेने कब चली आये,
मौत के देखो ये, सौगात बड़ी चुप चुप है!

"देव" आँखों में मेरी देख के समझ जाना,
प्यार की राह में हर बात बड़ी चुप चुप है!"

...........चेतन रामकिशन "देव"…........
दिनांक-१४.०१.२०१४