"♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥अंतिम विरह की पीड़ा ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
विरह के बेला नहीं है कटती, मिलन के सपने बड़े सताते!
हमारे आंसू बिलख बिलख कर, तुम्हें बुलाते, तुम्हें बुलाते!
हमारी आँखों के नीचे देखो, पड़े हैं गहरे निशान काले,
बिना तुम्हारे हमें सनम अब, ख़ुशी के पल भी नहीं सुहाते!
खुदा भी जाने क्यूँ ले गए हैं, हमारे घर से तुम्हें बुलाकर!
खुदा से पूछो जियूं मैं कैसे, तुम्हें भुलाकर, तुम्हें भुलाकर!
तुम्हारे बिन तो ये आईने भी, ख़ुशी की सूरत नहीं दिखाते!
विरह के बेला नहीं है कटती, मिलन के सपने बड़े सताते......
क्यूँ इतना कम था तुम्हारा जीवन, हमे अधूरा क्यूँ कर गए हो!
हमारे जीवन के पहलुओं पर, क्यूँ याद बनके बिखर गए हो!
कोई भी रस्ता नहीं है दिखता, जो पीछे पीछे मैं तेरे आऊ,
न लौटकर आओगे कभी तुम, क्यूँ इतने लम्बे सफ़र गए हो!
खुदा भी जाने क्यूँ ले गए हैं, हमारे घर से तुम्हें बुलाकर!
हमारी आँखों को नीर देकर, हमे रुलाकर, हमे रुलाकर!
तुम्हारे बिन तो हँसी ठहाके, हमारे मन को नहीं हँसाते!
विरह के बेला नहीं है कटती, मिलन के सपने बड़े सताते......
खुदा हमारी सुनो जरो तुम, सफ़र में तन्हा किया करो ना!
नहीं है कटती उम्र ये तन्हा, किसी को विरहा दिया करो ना!
ये "देव" कितना हुआ है तन्हा, जरो तो सोचो तड़प हमारी,
जुदाई के पल नहीं सुहाते, जुदा किसी को किया करो ना!
खुदा भी जाने क्यूँ ले गए हैं, हमारे घर से तुम्हें बुलाकर!
खुदा से पूछो जियूं मैं कैसे, तुम्हें भुलाकर, तुम्हें भुलाकर!
तुम्हारे बिन तो पड़ोसियों के, वो नन्हें बच्चे नहीं चिढाते!
विरह के बेला नहीं है कटती, मिलन के सपने बड़े सताते!"
" किसी के जीवन से किसी से चले जाने से जीवन का पक्ष निश्चित रूप से प्रभावित
होता है! किसी के असमय चले जाने से होने वाली पीड़ा बड़ा सताती है! उसी पीड़ा को अपने शब्दों में उकेरने का छोटा सा प्रयास किया है! www.chetankavi.blogspot.com
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-- २९.११.२०११