Thursday, 18 August 2011

♥♥हवस( पीड़ा की इन्तहा)♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥हवस( पीड़ा की इन्तहा)♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥

"डरी सहमी सी एक लड़की, खड़ी थाने के द्वारे पर!
 हवस के भेड़ियों ने उसकी हालत की बड़ी बदतर!
 फटे कपड़े, फटी चुनरी, हैं फूटे आंख से आंसू,
 नहीं सुनता मगर कोई, भटक के थक गयी दर दर!

हवस के भेड़िये करके भी ऐसा मुस्कुराते हैं!
मगर लड़की को वो मंजर हमेशा याद आते हैं!

हवस के भेड़ियों को अब नहीं कानून का भी डर!
डरी सहमी सी एक लड़की, खड़ी थाने के द्वारे पर.....

हवस के भेड़िये तो ये कहानी रोज लिखते हैं!
यहाँ कानून के रक्षक भी उनके हाथ बिकते हैं!
बड़ी मुश्किल से होती है जमा उस लड़की की अर्जी,
सिफारिश करके नेताओं की वो आजाद फिरते हैं!

हवस के भेड़िये कानून को ठेंगा दिखाते हैं!
मगर लड़की को वो मंजर, हमेशा याद आते हैं!

नहीं भगवान भी बिजली गिराता भेड़ियों के घर!
डरी सहमी सी एक लड़की, खड़ी थाने के द्वारे पर.....

हवस के भेड़ियों मानव का चोला ओढ़कर देखो!
हर लड़की भी मानव है, जरा तुम सोचकर देखो!
किसी पे जुल्म करने का तुम्हे तब होगा अंदाजा,
किसी हवसी को अपनी माँ बहन को सोंपकर देखो!

ऐसे पल किसी लड़की को जब भी याद आते हैं!
बदन बेजान होकर के, इरादे टूट जाते हैं!

निकलकर आंख से आंसू है करते गाल उसके तर!
डरी सहमी सी एक लड़की, खड़ी थाने के द्वारे पर!"


"बलात्कार/ छेड़ छाड़ की घटना, एक लड़की के जीवन को इतना दुखी करती हैं की वो,
कितने भी प्रयास करके, उस मंजर को भुला नहीं पाती है! हवस के भेड़ियों को भी अधिकांशत कानून का रक्षक भी सराहता है!-चेतन रामकिशन "देव"