Friday 28 December 2012

♥निशा की बेला..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥निशा की बेला..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
निशा की बेला देखो फिर से, चिंतनशील अवस्था लाई!
कहीं हर्ष की धवल चांदनी, कहीं दुखों की स्याही छाई!

किन आँखों से सपने देखूं, और कैसे साकार करूँ मैं!
पीड़ा का ये गहरा सागर, आखिर कैसे पार करूँ मैं!
जब भी आशा रखी मैंने, भाग्य विधाता रूठ गया है,
किन्तु मानव होकर कैसे, पत्थर जैसी मार करूँ मैं!

बुरे समय में जो अपनी थी, वो शक्ति भी हुई पराई!
निशा की बेला देखो फिर से, चिंतनशील अवस्था लाई!"

....................चेतन रामकिशन "देव"......................
दिनांक-२८.१२.२०१२