♥♥♥♥♥♥♥♥♥गरीब को सर्दी ने जो मारा♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रुकी है धड़कन, लहू जमा है, गरीब को सर्दी ने जो मारा!
यहाँ वहां वो फिरा बहुत पर, अलाव का न मिला सहारा!
हैं खोखले अफसरों के दावे, के सर्दी से कोई मरा नहीं है,
इन्ही अलावों की लकड़ियों से, गर्म है उनके घरों में पारा!
गरीब लोगों के ही हकों पर, ना जाने डाका पड़ेगा कब तक!
अलाव के बिन ठिठुर-ठिठुर के, गरीब जाने मरेगा कब तक!
गरीब लोगों के आंसुओं के, ना जाने कब तक बहेगी धारा!
रुकी है धड़कन, लहू जमा है, गरीब को सर्दी ने जो मारा....
कहाँ हैं सत्ता की घोषणायें के सर्दी से कोई नहीं मरेगा!
गरीब लोगों की जिंदगी को, अलाव प्रतिदिवस जलेगा!
बंटेंगे कम्बल, बंटेंगी जर्सी, ना सर्दी में नंगा रहने देंगे,
न सर्दी उनको दुखी करेगी, न पाला उन पर असर करेगा!
मगर ये कहने की बात है बस, नहीं है सच्चाई का धरातल!
गरीब को न मिला था कल भी, गरीब को न मिलेगा कुछ कल!
गरीब लोगों की जिंदगी की, कोई बदलता नहीं नजारा !
रुकी है धड़कन, लहू जमा है, गरीब को सर्दी ने जो मारा.....
कहाँ गयीं हैं वो संस्थायें, गरीब हित का जो दावा करतीं!
कहाँ गयी है उनकी सेवा, क्यूँ उनकी आंखें नहीं हैं भरतीं!
गरीबों के हित की आड़ लेकर, गड़प रहे हैं सभी खजाने,
ना जाने ऐसे दुरित कर्म से, क्यूँ संस्थायें नहीं हैं डरतीं!
गरीबों की इन पुकारों को, ये "देव" भी अब नहीं हैं सुनते!
गरीब लोगों की जिंदगी से, खुदा भी कांटे नहीं हैं चुनते!
गरीब लोगों पे टूटता है, खुदा की कुदरत का कहर सारा!
गरीब लोगों की जिंदगी की, कोई बदलता नहीं नजारा !"
" सर्दी से बढ़ने वाली मौतों की संख्या निरंतर बढ़ रही है!
सरकारों के, अफसरों के दावे खोखले लगते हैं! अलाव की लकड़ियाँ चौराहे पर
जलने की बजाये अफसरों के घरों में पारा बढाती हैं! आखिर गरीब ठण्ड से कब तक मरता रहेगा!
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक--०७.०१.२०१२
रुकी है धड़कन, लहू जमा है, गरीब को सर्दी ने जो मारा!
यहाँ वहां वो फिरा बहुत पर, अलाव का न मिला सहारा!
हैं खोखले अफसरों के दावे, के सर्दी से कोई मरा नहीं है,
इन्ही अलावों की लकड़ियों से, गर्म है उनके घरों में पारा!
गरीब लोगों के ही हकों पर, ना जाने डाका पड़ेगा कब तक!
अलाव के बिन ठिठुर-ठिठुर के, गरीब जाने मरेगा कब तक!
गरीब लोगों के आंसुओं के, ना जाने कब तक बहेगी धारा!
रुकी है धड़कन, लहू जमा है, गरीब को सर्दी ने जो मारा....
कहाँ हैं सत्ता की घोषणायें के सर्दी से कोई नहीं मरेगा!
गरीब लोगों की जिंदगी को, अलाव प्रतिदिवस जलेगा!
बंटेंगे कम्बल, बंटेंगी जर्सी, ना सर्दी में नंगा रहने देंगे,
न सर्दी उनको दुखी करेगी, न पाला उन पर असर करेगा!
मगर ये कहने की बात है बस, नहीं है सच्चाई का धरातल!
गरीब को न मिला था कल भी, गरीब को न मिलेगा कुछ कल!
गरीब लोगों की जिंदगी की, कोई बदलता नहीं नजारा !
रुकी है धड़कन, लहू जमा है, गरीब को सर्दी ने जो मारा.....
कहाँ गयीं हैं वो संस्थायें, गरीब हित का जो दावा करतीं!
कहाँ गयी है उनकी सेवा, क्यूँ उनकी आंखें नहीं हैं भरतीं!
गरीबों के हित की आड़ लेकर, गड़प रहे हैं सभी खजाने,
ना जाने ऐसे दुरित कर्म से, क्यूँ संस्थायें नहीं हैं डरतीं!
गरीबों की इन पुकारों को, ये "देव" भी अब नहीं हैं सुनते!
गरीब लोगों की जिंदगी से, खुदा भी कांटे नहीं हैं चुनते!
गरीब लोगों पे टूटता है, खुदा की कुदरत का कहर सारा!
गरीब लोगों की जिंदगी की, कोई बदलता नहीं नजारा !"
" सर्दी से बढ़ने वाली मौतों की संख्या निरंतर बढ़ रही है!
सरकारों के, अफसरों के दावे खोखले लगते हैं! अलाव की लकड़ियाँ चौराहे पर
जलने की बजाये अफसरों के घरों में पारा बढाती हैं! आखिर गरीब ठण्ड से कब तक मरता रहेगा!
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक--०७.०१.२०१२