Monday, 23 December 2013

♥♥गमगीनी ♥♥

♥♥♥♥♥♥गमगीनी ♥♥♥♥♥♥♥♥
बढ़ी महंगाई ने चूल्हे की, तपन छीनी है!
मुफलिसों के यहाँ न दाल है, न चीनी है!

जिसने वादे थे किये, हर घडी के हमदर्दी के,
उसी नेता के यहाँ जश्न है, रंगीनी है!

सोचके रोज ही मुफलिस यहाँ चुप हो जाये,
उसे मर मर के यहाँ, जिंदगी ये जीनी है!

बेचना चाहे भी गर, तो न खरीदे कोई,
सुरा अश्कों को उसे, जिंदगी भर पीनी है!

बड़ा मासूम वो दुनिया की चाल क्या जाने,
उसे तो आज भी मिट्टी की महक भीनी है!

नहीं जीते जी, नहीं मरके, कोई भी उसका,
अपने हाथों से उसे, अपनी कबर* सीनी है!

"देव" मुफलिस के यहाँ, कैसे तरक्की लिखूं,
उसके जीवन में तो बस, हर घड़ी गमगीनी है!"

..............चेतन रामकिशन "देव"…............ 
दिनांक-२३.१२.२०१३