Wednesday, 4 June 2014

♥♥पीड़ा की चादरपोशी..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥पीड़ा की चादरपोशी..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
खून नसों में जमा जमा है, आँखों में भी ख़ामोशी है!
जीवन के सब लम्हातों पर, पीड़ा की चादरपोशी है!
किसकी खता बताऊँ अब मैं, मुझको कुछ भी समझ न आये,
गलती मेरी, या कुदरत की, या मेरी किस्मत दोषी है!

ज़ख्म हो गया इतना गहरा, खुद हाथों से सिया गया न!
बिना जुर्म के सजा मिली है, पक्ष हमारा सुना गया न!

आह किसी की कोई सुने न, जाने कैसी बेहोशी है!
खून नसों में जमा जमा है, आँखों में भी ख़ामोशी है!

अपनी आँखों में अश्क़ों की, नमी उन्हें दिखलाई मैंने!
अपनी पीड़ा और बेचैनी रो रोकर बतलाई मैंने!
"देव" मगर जब किसी ने मेरे, दर्द को नहीं सहारा बख्शा,
तब खुद को तन्हा रहने की, ये आदत सिखलाई मैंने!

उनके बिन जीना मुश्किल था, उनको कितना बतलाया था!
उनके बिन मेरे जीवन में, फूल ख़ुशी का मुरझाया था!

लगता है मेरी किस्मत भी, दुख ने ही पाली पोसी है!
खून नसों में जमा जमा है, आँखों में भी ख़ामोशी है!"

..................चेतन रामकिशन "देव"….…….........
दिनांक- ०५.०६.२०१४