Thursday, 15 June 2017

♥♥♥♥सियासी...♥♥♥♥♥♥

♥♥♥♥सियासी...♥♥♥♥♥♥
झूठे सब्जबाग दिखलाकर। 
जात धर्म का पाठ पढ़ाकर। 
आज सियासी खुश होते हैं,
औरों के घर आग लगाकर। 

मुफ़लिस की एक ईंट ईंट तक,
झोपड़ पट्टी बिक जाती है। 
बची खुची बस जान जिस्म की,
मरकर पथ में फिंक जाती है। 

घर, बस्ती और गलियारों में,
नफरत की दिवार उठाकर।
आज सियासी खुश होते हैं,
औरों के घर आग लगाकर। 

व्याकुल बेरोजगार सिसकते,
कहीं पे चूल्हे नहीं दहकते,
कहीं नहीं है छत की छाँव,
भूख से बच्चे नहीं चहकते। 

सेंक रहे मतलब की रोटी,
मज़लूमों की लाश तपाकर।
आज सियासी खुश होते हैं,
औरों के घर आग लगाकर। "


......चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक- १६-०६-२०१७