Wednesday 10 April 2013

♥♥♥व्याकुल मन...♥♥♥




♥♥♥व्याकुल मन...♥♥♥♥♥♥♥♥
कंठ भर गया रोते रोते, साथ साथ ये मन व्याकुल है!
दर्द भरा है इतना दिल में ,रोम रोम भी शोकाकुल है!
है संवेदनहीन जहाँ ये, कोई किसी का दर्द न जाने,
मेरा मनवा तड़प रहा है और मेरी आँखों में जल है!

अब कोई जज्बात न समझे, सब रहते हैं अपनी धुन में!
नहीं पिघलता पत्थर का दिल, भले निवेदन करो रुदन में!

लोग यहाँ मदिरा को देखो, कहते हैं के गंगाजल है!
कंठ भर गया रोते रोते, साथ साथ ये मन व्याकुल है....

ऐसी दौलत का क्या करना, जिसका मन सम्पन्न नहीं हो!
भूख की कीमत उससे जानो, जिसके घर में अन्न नहीं हो!
कभी जरा तुम गौर से देखो, उसकी गहरी तन्हाई को,
बिना हमारे जिस मानव का, एक पल भी प्रसन्न नहीं है!

किसे सुनायें हम हालेदिल, वक़्त किसी के पास नहीं है!
लगता है मेरी किस्मत को, ख़ुशी का लम्हा रास नहीं है!

आसमान भी आग बरसता, और यहाँ पथरीली थल है!
कंठ भर गया रोते रोते ,साथ साथ ये मन व्याकुल है....

जो पत्थर बनकर के खुश हैं, उनको मोम नहीं भाता है!
कभी किसी का दर्द देखकर, उन को तरस नहीं आता है!
"देव" यहाँ पर जिस मानव के, मन में होती है मानवता,
वो मानव ही जनमानस के दर्द का, साथी बन पाता है!

मानवता के नाते जिस दिन, तुम मानव से प्यार करोगे!
वो दिन ऐसा होगा जब तुम, खुशियों का दीदार करोगे!

इस दुनिया में प्रेम की दौलत, मानो रेशम और मलमल है!
कंठ भर गया रोते रोते ,साथ साथ ये मन व्याकुल है! "

"
पीड़ा- ये सच है कि पीड़ा से कोई भी अछूता नहीं, किन्तु पीड़ा के मायने तब कहीं अधिक बढ़ जाते हैं, जब सामने वाला ऐसा व्यक्ति हमे पीड़ा देता है, जिस पर हम बहुत यकीन और नेह रखते हों, तो आइये जरा चिंतन करते हुए, किसी को दर्द कम से कम देने की कोशिश करें.."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१०.०४.२०१३